स्मृतियां….
आस की संध्या आती रही, दीप जलाकर
यामिनी बीती जाती रही, अश्रु बहाकर
मैं निर्निमेष कब तक निहारू, द्वार की चौखट
स्मृतियां सहलाती रही, घावों की धूल हटाकर…
– ✍️देवश्री पारीक ‘अर्पिता’
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आस की संध्या आती रही, दीप जलाकर
यामिनी बीती जाती रही, अश्रु बहाकर
मैं निर्निमेष कब तक निहारू, द्वार की चौखट
स्मृतियां सहलाती रही, घावों की धूल हटाकर…
– ✍️देवश्री पारीक ‘अर्पिता’
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