स्नेह बंधन
( पर्यावरण सरंक्षण पर आधारित लघु-कथा )
स्नेह – बंधन
किसी माली ने अपने घर के आंगन में एक पौधा लगाया और उसकी खूब अच्छी तरह से देखभाल की -उसे इस नन्हें से पौधे अत्यंत स्नेह हो गया
था। उस पौधे की सेवा में कोई कमी ना रह जाये इसीलिए वोह हमेशा पेड़-पौधों के जानकार,नर्सरी,एग्रीकल्चर संकाए में जा जा कर उसके रख रखाव के बारे में सारी जानकारी एकत्र करता और उसी तरह से देख भाल करता उसके लिए खाद -पानी व् अन्य दवाईयों का इन्तेजाम करता।और उसे बदलते हुए मौसम से बचने ,तेज़ धुप ,आंधी आदि से बचाव के भी प्रबंध कर रखे थे। आखिर कार माली की मेहनत रंग लायी और वोह नन्हा सा पौधा पेड़ बन गया।
माली और उसका पेड़ बड़ी ख़ुशी से साथ -साथ जीवन व्यतीत कर रहे थे . दुनिया के दुखों से दूर अपने निस्वार्थ प्रेम के सहारे वोह दोनों दोस्त अपनी ही दुनिया में मस्त रहते। माली अपने जीवन की सारी आप-बीती पेड़ से बांटता .और वोह पेड़ अपनी मूक अभिव्यक्ति अपनी डालियों को हिल-हिला कर देता। और कभी माली बहुत थका होता तो उसे अपनी शीतल छाया से सुकून का एहसास करवाता। माली अपने पारिवारिक दायित्वों का निर्वाह तो करता मगर अपना बाकि सारा समय वोह अपने पेड़ के साथ गुजारता । माली के पेड़ के साथ अत्यधिक लगाव की वजह से कई बार उसके घर वालों को इर्षा होने लगती ..और वोह शिकायत भी करते मगर वोह किसी की बातों की तरफ ध्यान ही नहीं देता।
समय का चक्र अपनी गति से चलता रहता है। दुःख और सुख जीवन में भी आते -जाते हैं। इसी तरह बुरा समय माली और उसके प्यारे पेड़ पर भी आया। एक दिन माली बहुत बीमार पड़ गया इतना की उसके बचने की कोई उम्मीद ही नहीं रही .और उसने संसार से विदा ले ली। हालाँकि मृत्यु -शय्या प् पड़े-पड़े उसका पूरा ध्यान पेड़ पर ही लग हुआ था और वोह बहुत रोया भी की अब उसके जाने के बाद उसके पेड़ का ध्यान कौन रखेगा? कौन उसे इतना प्यार देगा।जितना की उसने दिया।उसने अपनी पत्नी से वायदा लिया की वोह इसका ख्याल रखेगी। उसकी पत्नी ने उसे वचन दिया की वोह खुद उसका ख्याल रखेगी।तब जा के उसे चैन आया और उसने प्राण त्याग दिए। कुछ दिनों तक तक तो घर में गम का माहोल बना रहा। पूरा परिवार आर्थिक संकट से गुज़र रहा। उस पर मेहमानों का आना-जाना। माली के जाने के बाद परिवार को वापिस खुद को सँभालने में कुछ समय तो लग ही गया। .इस दौरान उस पेड़ को उपेक्षा का शिकार होना पड़ा। जिसके फल सवरूप वोह सूखने लग गया उसकी पत्तियां पिली पड़ने लगी और धीरे -धीरे उसे दीमक ने जकड किया।
काफी समय बाद मालिन को उस पेड़ की सुध जगी और उसे देखने अपने आँगन में आई तो उस पेड़ को देखके उसे बहुत दुःख हुआ और आत्म ग्लानी हुई . उसने खुद को बहुत कोसा की” उसने अपने जीवन के बाग़ को संभाल लिया अपने फूलों कभी पालन-पोषण किया मगर वोह इस पेड़ को कैसे भूल गयी जो उसके पति को इतना प्यारा था और इसके लिए उन्होंने जाते हुए खास तौर से मुझे वचन लिया था। अब अगर यह मर गया तो उनकी आत्मा को कितना दुःख पहुंचेगा। अब भी वोह भले ही आसमान का तारा बन गए मगर उपर से इसकी यह हालत देख कर ज़रूर दुखी हो रहे होंगे। नहीं! मुझे कुछ करना होगा ”
उसके बेटे ने माँ से कहा भी इस पेड़ को जड़ से उखाड़ के इसी जगह पर बिलकुल वैसा ही पेड़ और लगा देते है मगर मालिन ने मन कर दिया ”,की नहीं यह तुम्हारे पिता की याद है इसे संभाल के रखना हमारा फ़र्ज़ है इसकी यह हालत हमारी वजह से हुई है और अब हमें ही इसे पुनर्जीवन देना होगा। तुम चाहे इसके आस-पास और पेड़-पौधे लगा दो मगर इसे यहाँ से नहीं हटाया जायेगा।”
मालिन ने अपनी भूल सुधारने के उद्देश्य से उस पेड़ की देख भाल करनी वापिस शुरू कर दी . सुभाह शाम उसे पानी देती,खाद भी लाकर डाली और दीमक मारने की दवाई भी डाली और जो कुछ भी माली इस पेड़ केलिए करता था वोह सब किया। जिसके परिणाम -सवरूप उस पेड़ की किस्मत चमकी और फिर से हरा भरा हो कर लहलहाने लगा। और अपनी प्यारे माली के परिवार को भी अपनी शीतल छाया से आनंदित करने लगा।
सूखे हुए ,दीमक लगे पेड़ को फिर से हरा भरा व् नया जीवन देने में मालिन ने रात दिन एक जो कर दिए थे। भले ही उसे कभी इसके और अपने पति के प्रेम से कभी इर्षा होतीथी मगर अब नहीं ,अब वोह इसका भी चहेता बन गया था बल्कि पुरे परिवार का भी चहेता बन चूका था। अब माली के खानदान की आने वाली नस्लें भी इस पेड़ की स्नेह छावं में पलने लगी .और इसका पद व् महत्त्व इस खानदान में ठीक वैसे ही हो गया जसे परिवार के बड़े-बुजुर्गों का होता है।