स्नेह का भार
आनंद जी का बेटा शहर में नौकरी करता है । बहुत दिन हुए बेटे और पोते पोतियों से मिले। आनंद जी ने सोचा और जाने का मन बना लिया। घर के बगीचे के पेड़ पर इस बार बहुत अमरूद फले थे। बेटे और पोते पोतियों को अमरूद बहुत पसंद हैं , उन्हें दे आऊंगा और उनसे मिल भी लूंगा , ऐसा सोचकर उन्होंने अमरूद तुड़वाए और थैले में डालकर शहर जाने की तैयारी करने लगे। सोचा बच्चे अमरूद पाकर बहुत प्रसन्न हो जाएंगे । बच्चों से मिलने की उत्कंठा लिए वे अपना थोड़ा सा ज़रूरी सामान और अमरूद का थैला लिए शहर पहुंचे । वहां पहुंचकर देखा तो न कोई रिक्शा न टैक्सी ।
पता चला कि आज टैक्सी रिक्शा सब बंद हैं। बेटे का घर अधिक दूर था नहीं फिर भी एक मील करीब सामान लेकर चलना आनंद जी की उम्र के हिसाब से थोड़ा कष्टकारी तो था , पर जाना था ही , सो वे पैदल ही घर की ओर चल पड़े। घर पहुंचते – पहुंचते उन्हें थकान हो आई थी । घर पर बहू थी , आनंद जी को देखकर चरण स्पर्श की रश्म अदायगी कर बैठने को कहा और बताया कि बच्चे स्कूल गए हैं और ये दफ्तर । आनंद जी ने अमरूद से भरा थैला नीचे रखते हुए कहा , ‘ ये कुछ अमरूद हैं , बच्चों के लिए । इस बार तो पेड़ अमरूद से लद गया है । ‘ बहू कुछ बोली नहीं । आवाज देकर नौकरानी को बुलाया और कहा , ‘ रमा ये थैला अंदर रख दे और पिताजी के लिए पानी ले आ। ‘आनंद जी सोफे पर आराम की मुद्रा में बैठ गए । बहू नौकरानी के साथ दूसरे कमरे में चली गई और धीरे -धीरे बड़बड़ाने लगी । और कुछ नहीं मिला , थैला भर अमरूद ले आए । बीमारी की जड़ । बच्चों को तो वैसे ही सर्दी है , ऊपर से थैला भर अमरूद ।’ रमा तू एक काम करना , जाते समय ये थैला ले जाना । नहीं खा सकोगे तो आस पड़ोस में दे देना । ‘ बात आनंद जी के कानों तक पहुंच गई । समझ नहीं आ रहा था कि क्या कहें ? क्या करें ? नौकरानी ने पानी लाया। पानी पीकर निढाल से सोफे पर बैठे रहे । कुछ खाने पीने का भला अब किसे मन होता , पूछने पर उन्होंने मना कर दिया । कुछ देर बाद स्कूल से बच्चे लौटे , अपने दादा जी को देखकर खुशी से गले से लिपट गए । बच्चों के प्यार को पाकर आनंद जी कुछ क्षण के लिए सब कुछ भूल गए ।’ दादा जी हमारे लिए क्या लाए आप ? ‘ बच्चों ने बड़े भोलेपन से पूछा । आनंद जी कुछ कह न सके । उनकी आंखों में नौकरानी के हाथों में ले जाता हुआ अमरूद से भरा थैला घूमने लगा।
अशोक सोनी
भिलाई ।