“स्थानांतरण”
:१:
कैसी है क़ुदरत की नीति,
एक समान है स्थिति।
किसी के मरण की,
तथा किसी के स्थानांतरण की।
बिछुड़ने की स्थिति में हर आत्मा रोती है,
मंच से औपचारिक घोषणा होती है।
लाख दुर्गुणो को छुपाया जाता है,
गुणो का गाना ही गाया जाता है।
कितने अच्छे थे जाने वाले,
क्षतिपूर्ति नहीं कर पाएँगे लम्हे आने वाले।
बड़ा ही संवेदनशील स्वभाव था,
देख नहीं पाते थे किसी की व्यथा।
अच्छे आदमियों को ज़्यादा ठहरने कहाँ दिया जाता है,
आता बाद में है चले जाने का संदेश पहले आता है।
:२:
साहब थे कितने नेक दिल,
कभी नहीं रोकते थे छोटा-मोटा बिल।
इनके रहते तो दिवाली रोज़ थी,
हम जैसों की भी मौज थी।
हमने इनके रहते कभी तंगी को महसूस नहीं किया,
छोटे-मोटे बिलों की तरफ़ तो कभी साहब ने ध्यान ही नहीं दिया।
ट्रान्स्फ़र साहब की और आफ़त हमारी,
अब नए सिरे से करनी पड़ेगी तिकडम सारी।
नए साहब पता नहीं कैसे आएँ,
शायद ही हम उनके साथ निभा पाएँ।
:३:
ठीक हुई इनकी बदली,
एक रुकावट तो रास्ते से निकली।
रोज़ की टोका-टाकी,
हमारे दिल में नहीं रहती थी बाक़ी।
कभी लेट क्यों आते हो,
कभी जल्दी चले जाते हो।
साहब तो बहुत देखे हमने,
यह तो देता ही नहीं था जमने।
अबकी बार जो आएँगे,
उनसे शुरू में ही जमाएँगे।
बाद में ज़माना मुश्किल होता है,
उलझने पर सुलझाना मुश्किल होता है।
:४:
मुझे आज सकुन मिला,
एक दुश्मन तो निकला।
हर बात में टाँग अड़ाता था,
सारा दिन बड़बड़ाता था,
अपने को बढ़ा-चढ़ा कर दर्शाता था,
सब को मालूम है कि कुछ नहीं आता था।
जहाँ भी जाएगा बद्दुआ हमारी साथ रहे,
उसके दुश्मनों की जय हो इसकी सदा मत रहे।
:५:
इनके जाने पर मैं शक्तिहीन हो गया,
लगता है मेरा भास्कर कहीं खो गया।
करनी होगी शुरुआत नए सिरे से,
मुश्किल होगी काम लेने में किसी सिर फिरे से।
तराशना पड़ेगा मेहनत कर दिन रात,
शायद तभी लगेगा हीरा ऐसा हाथ।
दुःख है कि हम हो गए आभाहीन,
मुश्किल है साथी मिलना ऐसा ज़हीन।
हमारी दुआ है इनके साथ,
सूरज की तरह चमके दिन रात।