स्त्री देह और बाजारवाद
हर घंटे बलात्कार होते हैं, सिर्फ बलात्कार नहीं होते, बाॅडी की चीरा फाड़ी होती है लड़कियों के शरीर की फजीहत की जाती है स्तन काटे जाते हैं वेजाइना में कांच, लोहे की रॉड, कंकड़ पत्थर के टुकड़े, शराब की टूटी बोतलें घोंप मारने के बाद जला देते हैं चेहरा को ताकि कोई पहचान न सके । क्या उस देश का बाजार आपको मानसिक संतुष्टि दे सकता है ?
क्या गंदी पुरूष मानसिकता की शिकार महिला या दिल्ली गैंगरेप के दौरान पीड़िता के शरीर में रॉड घुसाया गया उसे भूल सकते है । यह सब अपराध है एक औरत के प्रति समाज की सोच साफ दिख रही है ।
स्त्री देह को अंधाधुंध प्रदर्शित कर नये -नये “प्रोडक्ट” बनाने की मुहिम तेज हो गयी है।
“अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का “गलत प्रयोग हो रहा है स्वतंत्रता का अर्थ यह कदापि नहीं कि पूंजी बनाने के लिए अपने माल की ज्यादा से ज्यादा बिक्री के लिए नग्नता, अश्लीलता का प्रदर्शन किया जाए । प्राय : यहीं देखने में आता है कि विज्ञापनों में जिस तरह से नारी देह का प्रदर्शन हो रहा है, उसमें आधुनिकता व फैशन के नाम पर देह पर कपड़ों की मात्रा घटती जा रही हैजो भावी संस्कृति के लिए अच्छे संकेत नहीं ।
अतः आवश्यकता सोच को बदलने की है । औरतों का मनचाहा इस्तेमाल करता पूंजीवाद अपने इस्तेमाल के लिए । चाहे उसे घर में रखना हो या रैम्प पर चलना वह सिर्फ ‘कार्य करने’ के लिए होती है, जैसा उसे कहा जाता है या उसे दिखाया जाता है. सोचना और निर्णय लेना औरतों का नहीं, पुरुषों का कार्य है. क्योंकि विश्व की लगभग समस्त पूँजी उन्हीं के पास है।यह सोच ठीक नहीं है ।
औरतों का मनचाहा इस्तेमाल करता है पूंजीवाद अपने लाभ के लिए । चाहे उसे घर में रखना हो या रैम्प पर चलना वह सिर्फ ‘कार्य करने’ के लिए होती है, जैसा उसे कहा जाता है या उसे दिखाया जाता है. सोचना और निर्णय लेना औरतों का नहीं, पुरुषों का कार्य है. क्योंकि विश्व की लगभग समस्त पूँजी उन्हीं के पास है।
लड़कों का हर गुनाह माफ होता है
लड़कियां जैसे-जैसे आगे बढ़ रही हैं पुरुष प्रधान समाज उसे स्वीकार नहीं कर पा रहा है इसलिए उनके खिलाफ हिंसा में बढ़ोतरी कर उन्हें पुन: चाहरदिवारी के अंदर ढकेलने की कोशिश में जुटा हुआ है। हमारा समाज आज भी लड़कों का हर गुनाह माफ करता है और लड़कियों को लड़कों के द्वारा किये गए कुकर्म का भी सजा देता है।
मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि बलात्कार की अधिकांश घटनाओं में बलात्कारी का मुख्य उद्देश्य यौनेच्छा की पूर्ति नहीं बल्कि स्त्री का अपमान करना और उसे शारीरिक व मानसिक कष्ट देना होता है। असभ्य और राक्षसी-प्रवृत्ति के पुरुषों को एक ही बात समझ में आती है कि किसी का अपमान करने का सबसे अच्छा उपाय यही है कि उसकी इज़्ज़त को मिट्टी में मिला दिया जाए। और समाज व सिनेमा से इन हैवानों ने यही सीखा होता है ।
महिलाओं को भी आत्मसंयम के साथ अपने आत्मविश्वास को बनाए रखते हुए हिंसक समाज का विरोध करना चाहिए।
इस दिशा में सरकार व निजी संस्थाओं ने महिलाओं को इन हिंसक प्रवृत्तियों से लड़ने के लिए बहुत से प्रशिक्षण केन्द्र खोल रखे हैं साथ ही वे कई जगह जाकर अपने ऊपर हो रहे अत्याचारों की शिकायत भी दर्ज करा सकती हैं।
असल में महिलाओं पर हिंसा को रोकने के लिए खुद समाज के प्रत्येक व्यक्ति को पहल करनी पढ़ेगी।
डॉ. मधु त्रिवेदी