स्त्री।
नहीं………………..।
ईश्वर की सभा में एक महीन पतली आवाज बहुत ही तेज सुर में गूंजी। इतनी तेज कि वहां उपस्थित सभी देवगणों को अपने कान पर हाथ रखना पड़ा।
किंतु वह आवाज़ उनकी हथेलियों के ढाल को भेदती हुई उनके कानों से होती हुई उनके ह्रदय की सुदूरतम गहराइयों तक पहुंची और जैसे कांच के सतह पर लोहे की कील को रगड़ा जाए उस असहनीय और कर्कश स्वर की तरह बड़ी देर तक उन्हे परेशान करती रही। जब सभी देवता गण उस यातना दायक स्थिति से उबरे तब सबने प्रश्न वाचक दृष्टि से उस स्वर की स्वामिनी की ओर देखने लगे।
एक देवता – तुम्हारा चौरासी लाख योनियों का भ्रमण समाप्त हो चुका है। अब तुम्हे पुनः मानव बनने का अवसर प्राप्त हो रहा है। इस तथ्य के प्रकाश में तो तुमको दमकना चाहिए किंतु तुम इतनी कातर आवाज़ में इस अवसर को नकार रही हो। क्या कारण है ?
स्वर स्वामिनी – भगवान आप मुझे वापस कीड़ों , मकोड़ों , मछली , केकड़ा, जानवर इत्यादि चौरासी लाख योनियों में पुनः भेज दें किंतु मैं स्त्री शरीर लेकर वापस मृत्यु लोक में नहीं जाऊंगी।
दूसरा देवता – किंतु क्यों ?
स्वर स्वामिनी – आपका बनाया गया संसार अब स्त्रियों के रहने लायक नहीं रह गया है। वहां उन्हें मानव समझा ही नहीं जाता। वे बस मांस के कुछ खास आनंद दायक टुकड़े के रूप में देखी जाती हैं। देवियों की पूजा अर्चना , कन्याओं का पूजन सब नाटक मात्र है। आप संसार से इतने दूर और ऊंचे स्थान पर बैठे हैं , जहां से न आप हमारी स्थिति देख पाते हैं और न हमारी चीख पुकार , हमारी याचना आप तक पहुंच पाती है। मुझे मानवी बनाने के स्थान पर कोई भूनगा , चिड़िया या कीड़ा बना दीजिए। यह आपसे मेरी करुण प्रार्थना है।
पूरी सभा स्तब्ध रह गई । कोई कुछ नहीं बोला।
Kumar Kalhans