स्त्रियां, स्त्रियों को डस लेती हैं
![](https://cdn.sahityapedia.com/images/post/3c2d0178e73488c47529b2977ea5c333_efa7f9a00d3fba6bcb0f5731dca2b178_600.jpg)
स्त्रियां, स्त्रियों को डस लेती हैं
कौन कहता है ये जुल्म और सितम बस मर्दों की जागीर है
औरतें यहां भी बाज़ी मार लेती हैं
कभी मां बनकर छीन लेती हैं एक बेटी की स्वतंत्रता
रटे रटाये नियम कानून में बांध कुतर देती है बेटी के पंख
कभी बहन बनकर रौंद देती है सपने
सिखलाती है वही पुराने पाठ, कायदे जो उसने पढ़े
कभी सास बनकर कुचल देती है अपने अहंकार के तले तुम्हें
तानों से निचोड़ देती है अरमान और स्वाभिमान भी
कभी ननद बनकर बता देती है औकात तुम्हारी
तोड़ देती है कमर तुम्हारे सच, सम्मान और सहजता की
कभी भाभी बनकर,कभी सहेली बनकर,कभी जेठानी,कभी देवरानी,कभी पड़ोसन
हर रूप में वो हसद, कमतरी का शिकार हुई वार करती घूम रही है घर में, सड़कों पर, दफ्तरों में छीन लेती है तुमसे खुशियाँ और थमा देती है तुम्हारे हाथों में दुख, पीड़ा, संशय, तुम जरा उठ कर दिखाओ वो तुम्हें झुकाने के लिए तत्पर खड़ी है ।।