स्टेटस
तुम मुझे उतना ही जानते है जितना मैं तुम्हें शायद उसी तरह जैसे तुम मेरे रोज़ के स्टेट्स को पढ़ लेते हो और चूंकि मेरा परिचय अब आपके मोबाइल में सेव है पर मात्र एक औपचारिक्ता भर के लिए क्योंकि तुम्हे शायद आज मेरी ज़रूरत है।
रास्ते में जाने कितने अजनबी मिलते है जो एक दूसरे से टकरा जाते हैं कोई मुस्कुराकर विनम्रता से उसे सहर्ष स्वीकार कर लेते हैं तो कोई आवेग से कड़ा प्रतिरोध करता है यह अपनी अपनी सोच या दृष्टि ही है क्योंकि टकराने वाला अमूक व्यक्ति कौन है शायद स्वयं से अच्छा या शायद कम अच्छा ख़ैर बुरा भी हो सकता है पर यहां उसके आंतरिक गुणों को बिना जाने समझे बाह्य आचरण आवरण को यथार्थ मान व्यवहार या दुर्व्यवहार करते हैं और पुनः अपनी राह में लौट जाते हैं।ये दो दृष्टि क्यों कल भी कुछ ऐसा ही था और शायद कुछ रोज़ पहले भी पर मेरे स्टेट्स से तुम मुझे कितना जान पाओगे ये तो मेरी अनुभूत
पलो का व्यौरा मात्र है जिसके यथार्थ कम कल्पना अधिक होती है।मैं रोज़ रोज़ चेहरे को स्टेट्स पर लगाकर एक समान नहीं रह सकता चूंकि चेहरा मात्र चेहरा होता है यथार्थ नहीं और फिर मुझे दूसरे से बेहतर होने की ललक है••
मनोज शर्मा