स्कूल की यादें
आत्मकथा एक लघु कथा के रूप में
हमारे स्कूल दिनों की बात है हम सभी दोस्त यूं ही गाते गुनगुनाते स्कूल की ओर चले जा रहे थे, उसी समय हमारे स्कूल में नामांकन फार्म भरे जा रहे थे और हमने उस दिन नामांकन फार्म नहीं भरा था, हमारा नामांकन फार्म भरना बाकी था, और फिर रास्ते में एक जादू वाला जो पहले गांव में आकर नयी-नयी कलाकृतियों से बच्चों को मोहित करता था, बस उसी का कार्यक्रम चल रहा था हम सभी चारों दोस्त उस कार्यक्रम को, उसके जादू को देखने में इतने व्यस्त हो गए थे कि हमें स्कूल जाने का याद ही ना रहा, फिर जब हम स्कूल पहुंचे तो स्कूल में दो पीरियड निकल चुका था और हमारे कक्षा शिक्षक भी काफी नाराज हुए थे, फिर हमें जो 10 वर्ष पहले सामान्य तौर पर उस समय स्कूल में सजा दी जाती थी वह दी गई, हमें धूप में उठक बैठक करा कर पूरा स्कूल ग्राउंड घुमाया गया, और फिर समय से इसको लाने की हिदायत भी दी गई, फिर हम खुशी-खुशी अपना फार्म भरे और शिक्षक से माफी भी मांगी, इस बात को करीब 10 वर्ष हो चुके हैं, अब तो ना दोस्तों के संग घूमने का समय है और ना ही हम अब एक साथ स्कूल जाते सब अपनी अपनी दुनिया में खो से गए हैं,
मैं अपने इस छोटी सी लघु कथा से आप सभी को संदेश देने का प्रयास किया है कि दोस्ती नई हो या पुरानी मगर जबरदस्त यादगार होनी चाहिए…
अभिषेक श्रीवास्तव “शिवाजी”
शहडोल मध्यप्रदेश