सौ बरस की जिंदगी…..
“सौ बरस की जिंदगी”
विद्या- कविता
क्यों रूठे बैठे हो
हॅस हॅस कर चलना सीखो
एक बार मिली है तुमको
यह सौ बरस की जिंदगी
नदी से बहना तुम सीखो
झरने से कल कल तुम सीखो
मधुर मधुर मुस्कान लिए
फूलों सा खिलना तुम सीखो।
क्यों फिरते हो
गमों का बोझ लिए
गम तेरे हैं ना मेरे हैं
यह तो आते जाते
बस ब्रह्म के फेरे हैं
तुझको बनाया उसे खुदा ने
कुछ तो सोचा होगा तेरे बारे में
यूं ही ना तुझको वह जीवन देता
यूं ही ना तुझको वह हंसना सीखाता।
मान उसका तू एहसान
तेरा है वह भगवान
आज नहीं तो कल जाना है
लेखा -जोखा सब ले जाना है।
हरमिंदर कौर
अमरोहा (यू.पी)