*सौलत पब्लिक लाइब्रेरी: एक अध्ययन*
सौलत पब्लिक लाइब्रेरी: एक अध्ययन
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(दिनांक 13 मार्च 2024 बुधवार को सुबह लगभग 11:00 बजे किये गये भ्रमण पर आधारित)
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सौलत पब्लिक लाइब्रेरी का प्रवेश द्वार आकर्षक जान पड़ता है। द्वार पर लगा हुआ बोर्ड रंगीन और ताजा होने के कारण दूर से ही चमक रहा है। उर्दू और हिंदी दोनों भाषाओं में बड़े-बड़े अक्षरों में बोर्ड पर सौलत पब्लिक लाइब्रेरी अंकित है। पते में हुजूर तहसील, निकट जामा मस्जिद, रामपुर, उत्तर प्रदेश अंकित है। हुजूर तहसील को आजकल पुरानी तहसील के नाम से ज्यादा जाना जाता है। 1947 में हुजूर तहसील में आगजनी के बाद हुजूर तहसील दूसरी निकट की ही एक इमारत में स्थानांतरित हो गई थी और तब से यह पुरानी तहसील जानी जाती है।
बोर्ड पर ही सौलत पब्लिक लाइब्रेरी का स्थापना वर्ष 1934 अंकित है। रजिस्ट्रेशन संख्या भी लिखी हुई है। लाइब्रेरी के लिए जीने से चढ़कर ऊपर जाना पड़ता है। जीना साफ सुथरा और भली प्रकार से बना हुआ है। सफेद और लाल रंग की पुताई जीना चढ़ने में आकर्षण उत्पन्न करती है।
जीना चढ़ने के बाद सौलत पब्लिक लाइब्रेरी का चौड़ा और बेहद लंबा बरामदा अपनी सफेदी और सादगी से मन मोह लेता है। टाइलें बिल्कुल नई जान पड़ती हैं । सफाई ऐसी कि धूल का एक कण भी ढूंढना कठिन हो जाएगा।
एक ऑफिस (कमरे) में हमने प्रवेश किया तो मजहर साहब नाम के एक दुबले-पतले, लंबे, बहुत ही सभ्य और शिष्ट व्यवहार के धनी लगभग सत्तर वर्ष के सज्जन से मुलाकात हुई। आप पिछले दस-बारह वर्ष से लाइब्रेरी को अपनी सेवाएं दे रहे हैं। लाइब्रेरी की हमने प्रशंसा की तो मजहर साहब ने लाइब्रेरी की बारीकियों को हमें समझाने में अपना सहयोग देने में कोई कसर नहीं रखी। बराबर के ही एक हॉल में हमें ले गए।
यह रीडिंग रूम था। रीडिंग रूम में बड़ी-सी मेज पर ‘अमर उजाला’ आदि छह-सात हिंदी-अंग्रेजी के अखबार पढ़ने के लिए रखे हुए थे। आठ-दस पत्रिकाऍं भी जिल्द के भीतर साफ-सुथरेपन से रखी हुई थीं । मजहर साहब ने बाद में हमें वह संग्रह-अलमारियॉं भी दिखाईं, जहॉं पिछले दो वर्षों के अखबार सुरक्षित रखे जाते हैं और जो शोधकर्ताओं के लिए अपने आप में एक अनमोल खजाना कहे जा सकते हैं।
रीडिंग रूम का इस्तेमाल मीटिंग में भी होता है। यह रीडिंग रूम की रचना से स्पष्ट हो रहा है। मंच बना हुआ था। मंच पर पॉंच-सात शानदार कुर्सियां सुसज्जित थीं । श्रोताओं की लगभग एक सौ कुर्सियॉं आराम से पड़ सकती हैं। मजहर साहब ने स्पष्ट भी कर दिया कि इसी हाल में मीटिंग भी होती है। सचमुच मीटिंग हॉल या रीडिंग रूम जो भी कहें, अपनी सुंदरता और साफ सफाई के मामले में हमें ही क्या हर आगंतुक का मन मोहने में समर्थ है । मंच के बॉंई ओर सौलत अली खॉं की रंगीन तस्वीर थी। यह सौलत पब्लिक लाइब्रेरी के संस्थापक थे।
रीडिंग रूम में ही शौकत अली खॉं एडवोकेट तथा सीन शीन आलम साहब के भी चित्र थे। यह वर्तमान अध्यक्ष डॉ महमूद खॉं के पूर्ववर्ती दो अध्यक्षों के चित्र थे। इनका साहित्यिक योगदान भला कौन नहीं जानता ! शौकत साहब ‘रामपुर का इतिहास’ लिखकर अमर हो गए हैं। सीन शीन आलम साहब अपनी खूबसूरत शायरी के लिए जाने जाते हैं । हमने दोनों महानुभावों सहित लाइब्रेरी में जिन-जिन महापुरुषों के चित्र लगे हुए थे, सबको प्रणाम किया।
लाइब्रेरी में एक चित्र मौलवी सैयद इम्तियाज हुसैन का भी है। इनके विषय में लिखा गया था कि यह लाइब्रेरी के ऑनरेरी (अवैतनिक) लाइब्रेरियन 1934 से 1937 तक रहे। फिर 1970 से 1981 तक भी रहे। 1934 में लाइब्रेरी शुरू हुई , अतः इसके संस्थापक अवैतनिक लाइब्रेरियन के रूप में मौलवी सैयद इम्तियाज हुसैन का योगदान ऐतिहासिक महत्व रखता है।
मजहर साहब लाइब्रेरी में सैंकड़ों बल्कि हजारों की संख्या में रखी हुई हिंदी पुस्तकों को हमें दिखाने के लिए ले गए। यह एक अलग कमरे में खुली हुई अलमारियों में सजा कर रखी गई थीं । नई किताबें भी थीं और पुरानी किताबें भी थीं। सब जिस प्रकार से संभाल कर रखी गई थीं ,वह सराहनीय प्रवृत्ति कही जा सकती है। कुछ पुरानी पुस्तकें पुराने जमाने के स्टाइल में जिल्द बॉंधकर रखी हुई थीं।
मजहर साहब हमारे प्रति विशेष कृपालु जान पड़े। कहने लगे कि कुछ दुर्लभ बहुमूल्य पत्र-पत्रिकाओं के दर्शन मैं आपको कराना चाहता हूॅं । हमें भला और क्या चाहिए था ! हमने तुरंत हामी भरी। मजहर साहब हमें एक कमरे में ले गए। वहॉं दो नई खरीदी हुई अलमारियॉं रखी हुई थीं । इनको खोलकर मजहर साहब ने हमें दबदबाई सिकंदरी अखबार की मूल प्रतियॉं दिखाईं। 23 मार्च 1936 का एक अंक हमारे सामने खोलकर उपस्थित भी किया। दबदबाई सिकंदरी रियासत काल में रामपुर से प्रकाशित होने वाला उर्दू साप्ताहिक था । इस उर्दू साप्ताहिक के प्रथम पृष्ठ पर सबसे ऊपर अंग्रेजी में अखबार का नाम दबदबाई सिकंदरी लिखा हुआ था। हमने पढ़ा और इतने पुराने अखबार की मूल प्रति सॅंभाल कर रखने के लिए सौलत पब्लिक लाइब्रेरी की प्रशंसा की। सौ साल से ज्यादा पुरानी कामरेड अखबार की फाइल भी हमें दिखाई गई । कामरेड मौलाना मोहम्मद अली जौहर की पत्रकारिता का एक निर्भीक नमूना था। जिन अखबारों के हम केवल नाम सुनते थे, आज उन्हें अपने सामने साक्षात देखकर ऐसा लग रहा था जैसे कुबेर का खजाना हमारे सामने खुल गया हो। मजहर साहब ने इस अनमोल धरोहर को पुनः अलमारी में रखा। अलमारी बंद करके ताला लगाया।
हमने मजहर साहब से पूछा कि अद्भुत सुंदर व्यवस्थाऍं इस लाइब्रेरी में देखने को मिल रही हैं। साफ-सुथरापन अद्वितीय है। इस पर मजहर साहब ने हमें बताया कि इसका श्रेय पिछले दो वर्षों में लाइब्रेरी के अध्यक्ष डॉ महमूद खॉं को जाता है। अलमारियॉं खरीदना, किताबों को ढंग से लगाना, मरम्मत और सुंदरीकरण, कंप्यूटर की सुविधा आदि कार्य डॉक्टर महमूद खॉं ने व्यक्तिगत रुचि लेकर करवाए हैं। इसमें उनका अपना कितना पैसा खर्च हुआ है, इसका आकलन करना कठिन है। लेकिन जो काया पलट हुई है वह डॉक्टर साहब की रुचि से ही संभव है।
हमने कंप्यूटर-रूम देखा। वहॉं कंप्यूटर पर रोजमर्रा का काम चल रहा था। कंप्यूटर के बराबर में ही स्कैनिंग की एक मशीन भी थी। स्कैनिंग की मशीन से पुस्तकों की स्कैनिंग होती है । बाहर भेजी जाती है। फिर उन पर आगे कार्य होता है। कंप्यूटर और स्कैनिंग मशीन के कक्ष में ही सौलत पब्लिक लाइब्रेरी के संस्थापक सौलत अली खॉं का एक सुंदर चित्र देखने को मिला। इस चित्र के नीचे इनका जन्म 1893 तथा मृत्यु 1969 अंकित है।
लाइब्रेरी के विभिन्न कक्षों की अनेक अलमारियों में राजा राममोहन राय फाउंडेशन तथा खुदाबख्श ओरिएंटल पब्लिक लाइब्रेरी पटना के सहयोग से उपलब्ध पुस्तकें भी देखने को मिलीं ।
आश्चर्यजनक बात यह रही कि लाइब्रेरी के भ्रमण में हमें लगभग आधा घंटा लग गया लेकिन इस आधे घंटे में एक भी पाठक हमें देखने को नहीं मिला। लाइब्रेरी रोजाना सुबह 8:30 बजे से 12:00 बजे तक तथा शाम को 5 से 8:30 बजे तक खुलती है। सारी सुविधाऍं पाठकों को उपलब्ध हैं । कोई शोधार्थी विशेष अध्ययन करना चाहे तो उसको सेवाऍं देने के लिए लाइब्रेरी तैयार है। सौलत पब्लिक लाइब्रेरी में जितनी पुस्तकें हैं, पत्र-पत्रिकाएं आती हैं, बैठने का बढ़िया इंतजाम है, पाठकों को सहयोग देने वाला कर्तव्यनिष्ठ स्टाफ है- वह सुंदर व्यवस्था रामपुर तो क्या दूर-दूर तक किसी पुस्तकालय में देखने को नहीं मिल सकती। सब प्रकार से यह पुस्तकालय सुसज्जित है। इसको मेंटेन करने में जो लोग भी लगे हुए हैं, उन सब की जितनी प्रशंसा की जाए कम है।
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सौलत पब्लिक लाइब्रेरी का इतिहास
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21 सितंबर 1934 को सौलत पब्लिक लाइब्रेरी का उद्घाटन हुआ था। शुरू में राजद्वारा तत्पश्चात बाजार सफदरगंज में यह लाइब्रेरी चली। बाद में 6 नवंबर 1935 को रियासती शासन द्वारा प्रदत्त पुरानी तहसील में वर्तमान भवन में लाइब्रेरी ने काम करना शुरू कर दिया। नवाबी शासन द्वारा 2 दिसंबर 1943 से पचास रुपए मासिक का अनुदान भी सौलत पब्लिक लाइब्रेरी को दिया जाना शुरू हो गया।
सौलत अली खॉं इस लाइब्रेरी के संस्थापक थे। उन्होंने पॉंच सौ रुपए नगद और पंद्रह हजार रुपए की किताबें लाइब्रेरी को शुरुआत में प्रदान की थीं ।जिस समय सौलत पब्लिक लाइब्रेरी का उद्घाटन हुआ था, तब सौलत अली खॉं रामपुर नगरपालिका के सर्वप्रथम निर्वाचित अध्यक्ष थे। उनका कार्यकाल 23 अप्रैल 1934 से 7 जनवरी 1935 तक का था।
सौलत अली खॉं बहुत निर्भीक तथा नवाबी शासन से टकराने की सामर्थ्य रखने वाले जन-नेता थे। वह समाज सुधारक भी थे। 1935 में उन्होंने ‘निजामे इज्तेमाइयत’ नामक एक पुस्तक प्रकाशित की थी और रामपुर में मुसलमानों के सामाजिक और पारिवारिक आचार-विचार को सुधार की दिशा में प्रवृत्त किया था।
‘जिम्मेदार आइनी हुकूमत’ के नाम से 1937 में चलाया गया उनका आंदोलन नवाबी शासन के खिलाफ सबसे बड़ी राजनीतिक लड़ाई थी। आंदोलन ने बेरोजगारी हटाने और उद्योगों के विकास की दिशा में कार्य किया। कुछ मुस्लिम प्रश्न भी इस आंदोलन से जुड़े थे। रामपुर की जनता का भारी सहयोग सौलत अली खॉं को मिला।
4 अगस्त 1947 को जब पुरानी तहसील में आग लगी थी, उस समय सौलत अली खॉं कराची में थे। वह रामपुर आना चाहते थे। लेकिन उन्हें बरेली में गिरफ्तार कर लिया गया और दो महीने बाद कराची वापस भेज दिया गया। प्रसिद्ध इतिहासकार शौकत अली खॉं एडवोकेट के अनुसार “यद्यपि वह मजबूरी में पाकिस्तान चले गए थे लेकिन मानसिक तौर पर मरते दम तक वह रामपुर में ही रहे।”आपकी मृत्यु 16 जून 1969 को कराची पाकिस्तान में हुई थी।(संदर्भ: रामपुर का इतिहास लेखक शौकत अली खॉं एडवोकेट)
इस तरह सौलत पब्लिक लाइब्रेरी नवाबी शासन के सहयोग के साथ-साथ रामपुर के एक अग्रणी जन-नेता और प्रतिष्ठित धनवान व्यक्ति के समाजसेवी प्रयासों के द्वारा स्थापित हुई एक महान कृति है।
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लेखक: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज) रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451