‘ सो कॉल्ड पढ़े – लिखे ‘
महिमा बहुत खुश थी उसकी पसंद के लड़के से उसकी शादी जो हो गई और लड़के में कमी किस बात की थी भला…जाना – माना परिवार पूरा खानदान सुशिक्षित परदादियाँ तक ऑक्सफोर्ड की पढ़ी हुई । वो बात अलग थी की उसके विषय ( पॉटरी एंड सिरामिक ) की जानकारी कम लोगों को थी ज्यादातर कमर्शियल सेरामीक ही जानते थे स्टूडियो पॉटरी से अनजान थे । कभी किसी रिश्तेदार का फोन आता की ‘ बने हुये पॉट में फेवीकोल में क्या मिला कर चिपकाते हैं ? महिमा जवाब देती मुझे नही पता…तुम्हें नही पता तो तुमने पढ़ाई क्या की है ? जी मैने ये चिपकाने वाली पढ़ाई नही की है ये तो क्राफ्ट में आता है मैंने तो ऑक्साइड्स बारे में पढ़ा है ये सुन अच्छा – अच्छा कर फोन रख दिया जाता ‘ इस विषय की जानकारी नही है ( सुपीरियरटी कॉम्प्लेक्स से ग्रस्त ) ये मानने मे सबकी गर्दन में मोच आने का डर था सो सब इस विषय में अपनी अज्ञानता मानने को तैयार नही थे ‘ ।
कुछ महीने बीते थे की सबने कहना शुरू कर दिया कुछ अपना काम भी करके दिखाओ…ना मिट्टी ना चाक ना ऑक्साइड्स ना फर्नेस कैसे काम करूँ मैं ? महिमा परेशान रहने लगी एक दिन सास को पति से कहते सुना की ‘ इसने पढा़ई क्या की है इसे तो कुछ आता ही नही…पति ने भी हाँ में हाँ मिलाया…पता नही मॉम मुझे भी समझ नही आ रहा…ये सुन महिमा को बड़ा धक्का लगा …इतने ‘ सो कॉल्ड पढ़े – लिखे ‘ लोगों से उसको ये उम्मीद ना थी…उस विषय की जानकारी हासिल करने के बजाय उसकी पढ़ाई का मज़ाक बनाने में लगे थे महिमा दुखी मन से सोचने लगी क्या सोचा था और क्या पाया ‘चिराग तले अंधेरा तो पता था किंतु जहाँ चिराग ही चिराग हैं वहाँ इतना अंधेरा उसकी समझ से बाहर था मन बार – बार कह रहा था ‘ काश हम मिले ही ना होते ‘ ।
मौलिक एवं अप्रकाशित
( ममता सिंह देवा , 28/11/2020 )