सोशल मीडिया: अवसर और चुनौतियां।
सोशल मीडिया: अवसर और चुनौतियां।
1. परिचय. सोशल मीडिया एक ऐसा मीडिया है जो बाकी सारे मीडिया (प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और समानांतर मीडिया) से अलग है। सोशल मीडिया इंटरनेट के माध्यम से वर्चुअल वर्ल्ड बनाता है जिसे उपयोग करने वाला व्यक्ति सोशल मीडिया के किसी भी प्लेटफार्म जैसे फेसबुक, टि्वटर, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप आदि का उपयोग कर पहुंच बना सकता है। लगभग विश्व में सभी क्षेत्रों में सोशल मीडिया का उपयोग तेजी से हो रहा है। ऐसे में देशों की सेनाएं इस के अवसरों और चुनौतियों को समझते हुए सोशल मीडिया के उपयोगों से अछूती नहीं है।
2. सोशल मीडिया अवसर और चुनौतियां. आज के दौर में सोशल मीडिया जिंदगी का एक अहम हिस्सा बन चुका है जिसके बहुत सारे फीचर हैं। जैसे सूचनाएं प्रदान करना, मनोरंजन करना और शिक्षित करना मुख्य रूप से शामिल है। सेना में कार्यरत सैनिकों को सोशल मीडिया के उपयोग ने कई अवसर प्रदान किए हैं। सेना ने सैन्य गोपनीयता के बरकरार रखते हुए कई सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म तैयार किए हैं और भी प्रगति जारी है जिसे सैनिकों को स्वचालित सूचना एवं शिकायत निपटान जैसे आवश्यकताओं की पूर्ति हो रही है। सोशल मीडिया एक प्रगत मीडिया है, एक वर्चुअल वर्ल्ड बनाता है जिसे इंटरनेट के माध्यम से पहुंच बना सकते हैं जो सारे संसार को जोड़ें रखता है। यह संसार का प्रचार-प्रसार का एक बहुत अच्छा माध्यम है। यह द्रुत गति से सूचनाओं का आदान प्रदान करने, जिसमें हर क्षेत्र की खबरें को समाहित किए होता है।
सोशल मीडिया सकारात्मक भूमिका अदा करती है जिसे किसी भी व्यक्ति, संस्था, समूह और देशों आदि को आर्थिक सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक रूप से समृद्ध बनाया जा रहा है। सोशल मीडिया के जरिए ऐसे कई विकासात्मक कार्य हुए हैं जिनसे कि लोकतंत्र को समृद्ध बनाने का काम शुरू हुआ है जिसे किसी भी देश की एकता, अखंडता, पंथनिरपेक्षता समाजवादी गुणों में भी वृद्धि हुई है।
सेना के द्वारा किए जाने वाले साहसिक कार्यों को सोशल मीडिया में प्रचारित होने से देशों के आम युवाओं में सेना में भर्ती होने के लिए चाह उत्पन्न होती है और साथ-साथ देश के लिए सकारात्मक रहने की भी प्रेरणा उत्पन्न होती है। आम लोगों को हमारे सैन्य वीरों का जो देश के लिए समर्पण हैं, उन्हें देश हित में कार्य करने की प्रेरणा देता है।
लोकप्रियता के प्रसार में सोशल मीडिया एक बेहतरीन प्लेटफॉर्म है जहां व्यक्ति एवं संस्था स्वयं को अथवा अपने किसी उत्पाद को ज्यादा लोकप्रिय बना सकती हैं। आज किसी हो चुके बड़े सैन्य ऑपरेशन और इन ऑपरेशन के महानायको को लेकर उन पर फिल्में बन रही हैं और इन फिल्मों के ट्रेलर, प्रोग्राम और किताबों का प्रचार-प्रसार एवं प्रसारण भी सोशल मीडिया के माध्यम से किया जा रहा है। वीडियो तथा ऑडियो चैट भी सोशल मीडिया के माध्यम से शुभम हो पाई है जिनमें फेसबुक,टि्वटर, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम कुछ प्रमुख प्लेटफॉर्म है। सोशल मीडिया जहां सकारात्मक भूमिका अदा करता है वहीं कुछ लोग इसका गलत उपयोग करते हैं। सोशल मीडिया का गलत तरीके से उपयोग कर ऐसे लोग दुर्भावना फैलाकर लोगों को बांटने की कोशिश करते हैं। सोशल मीडिया के माध्यम से भ्रामक और नकारात्मक जानकारी साझा की जाती है जिससे जनमानस पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
3. जिस प्रकार एक सिक्के के दो पहलू होते हैं ठीक उसी प्रकार सोशल मीडिया के भी दो पक्ष है जो इस प्रकार हैं:-
• दैनिक जीवन में सोशल मीडिया का प्रभाव:-
यह बहुत तेज गति से होने वाला संचार का माध्यम है।
यह जानकारी को एक ही जगह इकट्ठा करता है।
सरलता से समाचार प्रदान करता है।
सभी वर्गों के लिए है जैसे कि शिक्षित वर्ग या हो या अशिक्षित वर्ग यहां किसी भी प्रकार से कोई भी व्यक्ति किसी भी कंटेंट का मालिक नहीं होता।
फोटो वीडियो, सूचना, डाक्यूमेंट्स आदि को आसानी से शेयर किया जा सकता है।
• सोशल मीडिया का दुष्प्रभाव:-
यह बहुत सारी जानकारी प्रदान करता है जिनमें से बहुत सारी जानकारी भ्रामक भी होती हैं।
जानकारी को किसी भी प्रकार से तोड़ मरोड़ कर पेश किया जा सकता है।
किसी भी जानकारी का स्वरूप बदल कर वह उकसावे वाली बनाई जा सकती है जिससे जब वास्तविकता से कोई लेना देना नहीं होता है।
यहां कंटेंट का कोई मालिक ना होने से मूल स्त्रोत का अभाव होता है। साइबर अपराध सोशल मीडिया से जुड़ी सबसे बड़ी समस्या है।
4. सेना में सोशल मीडिया चुनौतियां. मौजूदा समय में इंटरनेट के माध्यम से लगभग हर व्यक्ति आज किसी ना किसी सोशल नेटवर्किंग साइट से जुड़ा है। सोशल मीडिया ने जिस तेजी से लोगों के जीवन में पैठ बनाई है, उसके दुष्परिणाम भी सामने आने लगे हैं। इन्हीं को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश जारी कर केंद्र सरकार को 3 सप्ताह के अंदर शपथ पत्र प्रस्तुत करने को कहा, जिससे एक आस जगी है कि सोशल मीडिया पर बढ़ रहा दुष्प्रभाव पर लगाम लगाई जा सकेगी। इस प्रकार सेना मुख्यालय से समय-समय पर सोशल मीडिया को लेकर विभिन्न दिशा-निर्देशों एवं एडवाइजरी को निकाला और निष्पादित किया जाता है जिससे जो भी कर्मचारी सोशल मीडिया का उपयोग करते हैं, वह, इस दिशा निर्देशों का ध्यान में रखकर ही सुरक्षित रूप से सोशल मीडिया का इस्तेमाल करेंगे।
मौजूदा कानूनों के ढांचे में सोशल मीडिया अपनी सीमाओं का अतिक्रमण लगातार करता रहा है। अब देश के किसी भी कोने से हिंसा होती है तो उसके पीछे किसी ना किसी रूप में अफवाह फैलाने के लिए सोशल मीडिया का दुरूपयोग अब खुलकर होने लगा है। किसी स्थिति में देश के सामाजिक ताने-बाने को बनाए रखना एक बड़ी चुनौती बन गया है। आज देश में सोशल मीडिया के दुरुपयोग को रोकने की आवश्यकता महसूस की जा रही है। इसलिए अब समय आ गया है कि सोशल मीडिया पर संवैधानिक अधिकारों को ध्यान में रखते हुए अंकुश लगाया जाए। इसके विनियमन के लिए, पिछले वर्ष भी एक ड्राफ्ट लाया गया था। लेकिन अभी तक वह मूर्त रूप नहीं ले सका है। सोशल मीडिया पर सामग्री का विनियमित करने के लिए जर्मनी की तरह कठोर कानून की आवश्यकता है।
सोशल मीडिया को नियंत्रित करने के लिए हमारे पास पूर्व के आईटी कानून हैं जिनको वर्ष 2000 में बनाया गया था और 2008 में इसमें संशोधन हुआ था जिस में कुछ ऐसे प्रावधान जोड़ दिए गए थे, जो संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करते थे। इसलिए वर्ष 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने आईटी एक्ट की धारा 66 ए को समाप्त कर दिया था। इसी फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने धारा 69 ए को सही ठहराया था, जिसके माध्यम से राज्य को यह शक्ति मिलती है कि वह सोशल मीडिया पर उपलब्ध किसी भी सामग्री को ब्लॉक कर सकता है अथवा संबंधित सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को सामग्री को हटाने के लिए आदेश जारी कर सकता है। मौजूदा उत्पन्न समस्या में कुछ पहलू कानून के हैं और कुछ तकनीक के हैं । समस्या यह है कि हम तकनीक को तेजी से बदल रहे हैं । लेकिन कानूनों को बदलने में हमें समय लगता है और इन दोनों के बीच के समय अंतराल में बहुत सारी समस्याएं जन्म ले लेती हैं । मौजूदा समस्या को हम इसी समय अंतराल से उत्पन्न हुआ देख रहे हैं । सोशल साइट्स प्लेटफॉर्म द्वारा वर्ष 2015 में कहा गया था कि वह स्वविनियमन करेंगी । आपत्तिजनक सामग्रियों को स्वचलित टूल के माध्यम से हटाएंगी । लेकिन जब व्हाट्सएप और अन्य कई सोशल नेटवर्किंग कंपनियों द्वारा एंड टू एंड इंक्रिप्शन की बात की जा रही है । तो किस तरह से कंपनियां किसी व्यक्ति विशेष की मैसेजेस को पढ़ सकेंगे ।
सोशल मीडिया ने निजी बातों को सड़क पर ला खड़ा किया, देखा जाए तो सोशल मीडिया एक अनियंत्रित बाढ़ सा चला आ रहा है । हालत ये है कि अगर कोई असामाजिक मैसेज या वीडियो सोशल मीडिया में वायरल हो जाये तो उसे रोक पाना प्रशासनिक तौर पर संभव नहीं है । ऐसे में आंतरिक सुरक्षा एंव कानून – व्यवस्था के लिए सोशल मीडिया एक गंभीर प्रशासनिक चुनौती के रुप में सामने आया है। पिछले कुछ सालों में राष्ट्र विरोधी तत्वों द्वारा देश की सामाजिक एकता को तोड़ने के लिए दूसरी जाति , धर्मों , वर्गों के खिलाफ फेसबुक , वॉटसएप एंव ट्विटर का प्रयोग कुप्रचार करने , हिंसा फैलाने में बेहिचक किया गया है। समय – समय पर विभिन्न जांच एंजेसियां भी इसकी पुष्टि करती हैं और विभिन्न राज्यों की पुलिस के सामने भी ऐसे मामले लगातार दर्ज हो रहे हैं।
सोशल मीडिया की मदद से आम जनता ने अपनी बातों को विदेश मंत्री तक पहुंचाया था और उनसे मदद भी मिली थी । इसके साथ – साथ सुरेश प्रभु के रेलमंत्री के पद पर रहने के दौरान भी आम जनता ने बखूबी
ढंग से सोशल मीडिया का उपयोग कर अपनी समस्याओं का निराकरण कराया था । लेकिन दुर्भाग्य है कि इसी तेजी से सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का दुरुपयोग भी हुआ है और इनका उपयोग अपराध , पॉर्नोग्राफी , समाज को दूषित करने में , अफवाहों को फैलाने में हो रहा है । अपराध को रोकना और उनकी जांच करना राज्य सरकारों का कर्तव्य होता है । लेकिन अनुच्छेद 91 और 92 के तहत दिए गए अधिकारों के कारण राज्य सरकारें अपनी सीमा रेखा नहीं तय कर पा रही हैं । जिसके उल्लंघन की शिकायतें निरंतर आती रहती हैं । इसलिए समय की आवश्यकता है कि पुराने आईटी कानूनों में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के लिए कुछ आवश्यक नए प्रावधान किए जाएं । जिससे राज्य और व्यक्ति विशेष के बीच एक लक्ष्मण रेखा खींची जा सके । अभी तक जब राज्य सरकारें पुराने आईटी कानूनों को लागू करवाने की दिशा में आगे बढ़ती थी । तो कंपनियों सुरक्षा एजेंसियों का सहयोग ना के बराबर ही करती थी । अक्सर कंपनियां व्यक्ति विशेष का डाटा सुरक्षा एजेंसियों को उपलब्ध कराने से इंकार कर देती थी । लगभग सभी कंपनियों के प्रशासनिक कार्यालय भारत से बाहर हैं।
सोशल मीडिया का इस्तेमाल, समाज विरोधी कार्यों के लिये होने लगता है तब समस्या होती है । परिस्थितियां असाधारण होने पर असाधारण कदम उठाने अनिवार्य हो जाते हैं । अभी की स्थिति में सेंसरशिप जैसी कोई चीज़ नहीं है । लोगों को खुली छूट मिली हुई है जिसका गलत इस्तेमाल किया जा रहा है । लोगों की अभिव्यक्ति के अधिकार का पूरा समर्थन किया जाना चाहिये , लेकिन सुरक्षा की कीमत पर नहीं । साइबर दुनिया के गलत इस्तेमाल पर अंकुश लगाना ज़रूरी है । साइबर सुरक्षा और सोशल मीडिया के दुरुपयोग का मुद्दा ऐसा है , जिसकी और अनदेखी नहीं की जानी चाहिये । सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफॉर्म्स के ज़रिये गलत विचारों के साझा करने से देश की आंतरिक सुरक्षा खतरे में पड़ जाती है , ऐसे में इसके खिलाफ कड़ा नियमन करने की आवश्यकता है । परिस्थितियाँ बिगड़ने पर इंटरनेट पर प्रतिबंध लगा देना कोई समाधान नहीं है । सोशल मीडिया के क्षेत्र में नित नई चुनौतियाँ उभर रही हैं । ऐसे में साइबर अपराधों और हमलों को लेकर काफी सजग रहने की भी आवश्यकता है ।
नायब सूबेदार मणि कुमार
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