सोरठा छंद , परिभाषा एवं उदाहरण
सोरठा
सोरठा छंद अर्धसममात्रिक छंद हैं, सोरठा छंद के प्रथम और तृतीय चरणों में 11-11 मात्राएं होती हैं. और दूसरे और चौथे चरणों में 13-13 मत्राएं होती हैं.|
सोरठा छंद ,दोहा छंद का बिलकुल उल्टा होता है , इसके प्रथम और तृतीय चरण के अंत में एक गुरु और एक लघु होता है |
दूसरे- चौथे चरण के अंत में लघु गुरु होते हैं , तीन लघु भी हो सकते हैं , किंतु गुरु-लघु नहीं हो सकते है , यदि अंत सोरठा यानि २१२ से हो तो अति उत्तम सृजन हो जाता है |
भट्ट मथुरानाथ शास्त्री ने अपने पूर्वज श्रीकृष्ण भट्ट कविकलानिधि का सोरठा छंद में निबद्ध संस्कृत-कविता में इन शब्दों में स्मरण किया था-
तुलसी-सूर-विहारि-कृष्णभट्ट-भारवि-मुखाः।
भाषाकविताकारि-कवयः कस्य न सम्भता:॥
(इस संस्कृत श्लोक में सम चरणों का पदांत लघु गुरु से है ,
कुछ मित्र दूसरे -चौथे चरणों में पदांत गुरु गुरु से कर देते हैं , तब कौन किसको रोक सकता है ? गलत तो गलत है , किसी महाकवि के अपवाद उदाहरण देकर परम्परा नहीं डाली जा सकती है, पर मैं उनसे कहना चाहता हूँ कि यदि इन चरणों का पदांत गुरु गुरु से सही मानते हैं , तब तो कह सकते है कि एक रोला में दो सोरठा होते हैं,या दो सोरठे एक रोला बना देते हैं
सोरठा में प्रथम – तीसरे चरणों की तुकांत बनाई जाती है , लेकिन दूसरे -चौथे चरणों की तुकांत जरुरी नहीं है ,
मात्रा बाँट का विधान अलग से देखने हमें तो नहीं मिला है , पर यह मात्रा बाँट दोहे के चरणों की तरह ही सही है , तब उसी हिसाब से मात्रा बाँट करना सही रहेगा ,
मात्रिक छंदो में समकल विषमकल का एक ही विधान है कि समकल के बाद समकल , विषमकल के बाद विषमकल सही होता है
जो सुमिरत सिधि होय, गननायक करिबर बदन।
करहु अनुग्रह सोय, बुद्धि रासि सुभ गुन सदन॥
कुंद इंदु सम देह , उमा रमन करुनायतन ।
जाहि दीन पर नेह , करहु कृपा मर्दन मयन ॥
(तुलसीदास जी)
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रहिमन मोहि न सुहाय , अमिय पियावत मान बिन |
जो विष देत बुलाय , प्रेम सहित. मरिबो भलो ||
(रहीम जी)
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सुभाष सिंघई के सोरठा
चलते लोग कुचाल , दुर्जन जाकर देखिए |
होते सब. बेहाल , काटते बनकर विषधर ||
कंगन का यह राज, पनघट छनछन क्यों बजे |
बहुत हुई आबाज , वहाँ लिपटकर डोर से ||
गोरी दर्पण देख , मोहित खुद पर हो रही |
रही रूप को लेख , कनक समझती निज तन ||
नहीं बुरी है बात, अपना हित ही देखना |
चले किसी पर लात , गलत समझना साधना ||
सदा रटे प्रभु नाम , तोता ज्ञानी कब बना |
भजन जहाँ श्री राम , दर्शन मिलते भगत को ||
रावण जग बदनाम , करके एक अनीति जब |
उसकी जाने राम , करता जो ताजिंदगी ||
देकर चोट निशान , ज़ख्म कुरेदे जग सदा |
करता है अपमान , आरोपों को थोपता ||
मतलब के सब यार , मिलते रहते हैं यहाँ |
मिले हाथ में खार, फैलाकर भी देख लो ||
कमी निकालें खोज ,माल बाँटिए मुफ़्त में |
बिक जाता है रोज , कचरा जाओ बेचनें ||
बहुत मिलेगें दाम , छाया के सँग फल मिलें |
जब हों कच्चे आम ,पत्थर को मत मारिए ||
उतरे हल को ठान , हम समझे हालात को |
कड़वा पाया पान , हाथ जलाकर आ गए ||
तरह-तरह के रोग , माना इस संसार में |
दाँव पेंच के योग , सबके अपने रोग है ||
नहीं कोई नादान , ज्ञानी अब सब लोग है |
अपना ज्ञान बखान , जगह-जगह हैं बाँटते ||
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राजनीति पर ~सोरठा
करने को कुछ गान , गूंगे बहरे जा रहे |
उतरे है मैदान, लँगडे़ अंधे दौड़ने ||
असली आज जुबान, अंधी गूँगीं बन गई |
घूमें बना किसान ,कागा साफा बांधकर ||
अब चुनाव में शान, नोट लुटाकर जीतना |
कुर्सी के श्रीमान , अपराधी अब बन गए ||
अभी दुखी है देश , राजनीति करना नहीं |
कोई भी परिवेश , सबक सिखाना शत्रु को ||
निपटाओ गद्दार , पहले भारत देश में |
इनका प्रथम सुधार नेता हो या मजहबी ||
पाक परस्ती गान , हरदम उनकी बात करें |
सबको बंद जुवान , पहले उनकी चाहिए ||
मित्रता पर सोरठा
बात करे दो चार, मित्र सदा मिलता रहे |
लगता घर परिवार , मिलते-मिलते मित्र भी ||
मित्र करे तकरार, आलोचक से सामना |
समझो सच्चा यार,भले न तुमसे मिल सके ||
मित्र सुने चुपचाप, जहाँ बुराई आपकी |
गलत नहीं हैं आप, संशय उस पर कीजिए ||
आए तेरे काम , मित्र अगर संकट सुनें |
लेकर हरि का नाम , भाई सम उसको चुने ||
कोई एक विचार, नेक आपके पास है |
दो होगें तैयार , किसी मित्र से बदलिए ||
संकट के दौरान ,सदा मित्र का साथ हो |
रहती है मुस्कान , कट जाते हैं कष्ट सब ||
©सुभाष सिंघई
एम•ए• {हिंदी साहित़्य , दर्शन शास्त्र)
(पूर्व) भाषा अनुदेशक , आई•टी •आई • )टीकमगढ़ म०प्र०
निवास -जतारा , जिला टीकमगढ़ (म० प्र०)
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आलेख- सरल सहज भाव शब्दों से सोरठा को समझानें का प्रयास किया है , वर्तनी व कहीं मात्रा दोष हो तो परिमार्जन करके ग्राह करें |