सोने की दस अँगूठियाँ….
कुशागढ़ के राजा तेजस्वी अपनी प्रजा का बड़ा ही ख़याल रखते थे. समय समय पर अपनी प्रजा से मिलना और महीने में एक बार अपने दरबार में विशिष्ट नागरिकों को आमंत्रित करते थे प्रजा के उन लोगों को सम्मानित भी करते थे जो उनके राज्य का नाम करता था और अगर प्रजा में कोई किसी को समस्या होती हैं राजा से सीधा संवाद कर सकता हैं. राजा का अपने राज्य में ही नहीं अन्य राज्यों में भी बहुत मान था. जब भी राजा अपने अपनी प्रजा से मिलने जाते जगह जगह राजा का स्वागत सत्कार होता.राजा ने अपने सेनापति को आदेश दिया की इस बार हम कुछ चुनिंदा लोगों से बात करना चाहते हैं जो अपने अपने क्षेत्र में विशेष योगदान रखते हैं लोगों को आमंत्रण भेज दिया जाए , निश्चिंत समय पर राजा विशिष्ट व्यक्तियों से अलग अलग मिले. कुछ लोगों ने राज्य की बेहतरी के लिए सुझाव दिए , ये निश्चित हैं वार्तालाप या संवाद ऐसा होना चाहिए जो हमेशा हितकारी हो अपने लिए भी राज्य के लिए भी और समाज के लिए भी और राजा के लिए भी …इसी में सबके भलाई भी हैं. राज्य में एक सभ्य सुंदर धनाढ्य नौजवान भी राजा से मिलते हैं उनको भी आमंत्रित किया गया था , जैसे ही वो नौजवान राजा के पास पहुँचा सबसे पहले उसने राजा के पैर छूकर आशीर्वाद लिया और अपने हाथों की दसों उँगलियों में से सोने की दस की दस अँगूठियाँ राजा को सौंप दीं राजा ने उस नौजवान से पूछा ऐसा क्या हुआ जो आप अपनी दस की दस सोने की अँगूठियाँ दे कर जा रहे हो. नौजवान राजा के सामने हाथ जोड़ कर प्रार्थना करने लगा , महाराजा मुझे ज्ञान प्राप्त हो गया हैं आप इन सभी अंगुलियों को राज्य के हित में काम में ले ले. राजा नौजवान से बोले वो तो ठीक हैं इसका आप मुझे कोई तर्क तो दें आप कह रहे हैं मुझे ज्ञान प्राप्त हो गया हैं. महाराज ये दस अँगूठियाँ( काम, क्रोध, मद, लोभ, अहंकार, ईर्ष्या, द्वेष, आलस्य, छल, और हठ) हैं अब में इन सब से छुटकारा पाना चाहता हूँ. राजा को इस नौजवान की बात बहुत अच्छी लगी राजा ने नौजवान का ज़ोर दार स्वागत किया और सेनापति को आदेश दिया इन दसों अँगूठियों को गला दो और एक ऐसी आकृति बनवाओ जिसको देख कर मन में आनंद भर जाए और आपस में प्रेम की भावना पैदा हो.