सोना ठीक है क्या
ख्वाहिशें का बोझ ढोना, ठीक है क्या
आपका यों नित्य रोना, ठीक है क्या
दूसरों की बात को दिल में दबाकर
फिर पलक अपनी भिगोना,ठीक है क्या
लौटकर आता नहीं है वक़्त प्यारे
हाथपर धर हाथ सोना, ठीक है क्या
हर किसी के काम में देकर दख़ल फिर
बेवज़ह बदनाम होना, ठीक है क्या
दो गुने के लोभ में पैसा लगाकर
यों कमाया माल खोना, ठीक है क्या
_________________________✍️अश्वनी कुमार
गीतिका आधार छंद : पियूष निर्झर