सोनचिरैया देश यह…
सोनचिरैया देश यह, था जग का सिरमौर !
महकाती सारा जहां, कहाँ गई वह बौर !!१
रक्षक ही भक्षक बने, खींच रहे हैं खाल !
हे प्रभु ! मेरे देश का, बाँका हो ना बाल !!२
बेरोजगार बढ़ रहे, जनसंख्या के साथ !
बीसियों पेट भर रहे, केवल दो ही हाथ !!३
भाई-चारा मिट गया, आया कैसा दौर !
एक भाई छीन रहा, दूजे मुख से कौर !!४
यह सभ्यता यह संस्कृति, यह वाणी यह वेष !
कुछ भी तो अपना नहीं, बचा नाम बस शेष !!५
मुँह से निकली बात के, लग जाते हैं पैर !
बात बतंगड गर बने, बढ़ जाते हैं बैर !!६
धन दौलत औ शोहरत, तेरी उत्कट चाह !
पगले! तू तो चल पड़ा, बरबादी की राह !!७
पुण्यात्मा के हाथ भी, हो जाते हैं पाप !
प्रायश्चित का वारि तब, धोता उनकी छाप !!८
फल तो उसके हाथ है, करना तेरे हाथ !
निरासक्त हो कर्म कर, देगा वो भी साथ !!९
मरा-मरा का जाप कर, डाकू बना महान !
राम-राम मैं नित जपूँ, कब होगा कल्यान !!१०
– © सीमा अग्रवाल,
मुरादाबाद ( उत्तर प्रदेश )