सोच…….🤔
मैं कौन हूं सोचूं तो मैं एक वैराग्य हु।
अगर वैराग्य हूं तो बंधन से मुक्त हू
और मुक्त हू तो मैं शून्य हु ।
शून्य हु तो हर एक अंक पर भारी हु ।
दोबारा सोचू या लगातार सोचूं तो
मैं पूरी तरह से बर्बाद हूं
साथ ही में असफल और खराब हूं।
अंतिम बार सोचूं तो मैं..
जीवन में एकांत ,लाचार और शांत हूं।
विवेक शर्मा विशा 🥇
इलाहाबाद विश्वविद्यालय 🎓