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18 May 2023 · 1 min read

”सोचा ना था”

कविता -06
सोचा ना था कभी आसमान से गिरती ये बारिशें इस बरस भी मुझे अकेले ही भिगाऐंगी
सोचा ना था कभी समन्दर की लहरों से खेलता पक्षी मेरी आंखों को लुभाऐगा
सोचा ना था कभी आसमान से गिरती ये बारिशें सूनसान खड़े पेड़-पोधों पे बरसेंगी
सोचा ना था कभी साहिल के रेत पर अश्व के पैरों के निशान को मिटाऐंगी
सोचा ना था कभी आसमान से गिरती ये बारिशें जमीं की प्यास बुझाऐंगी
सोचा ना था कभी आसमान से गिरती ये बारिशें इस बरस भी मुझे अकेले ही भिगाऐंगी
सोचा ना था कभी जिन्दगी में अपनों के साथ जीऐ खास लम्हें इतना याद आऐंगें
साधारण सी लगनें वाली जिन्दगी अपनों से ही मिलनें को तरसाऐगी

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