सोचमग्न
लोधा जी को कुछ न कुछ सोचने की बीमारी थी। पता नही अपने खयालों मे डूबे विचारों के गहरे सागर की किस तह पर बैठे रहते थे कि प्रत्यक्ष मे होने वाली बातों की प्रतिक्रिया देने मे थोड़ा समय लगता था।
उनकी इस आदत से उनके करीबी परिचित थे। जानते थे कि उनसे जल्द कोई उत्तर मिलने की कोई उम्मीद नही है। अगर खुद के पास फुरसत हो तब ही उनको कोई बात पूछते, क्योंकि पहले जहां वो अटके पड़े है, उस सोच को दुआ सलाम करने और फिर जल्दी लौट के आने का वादा करने के शिष्टाचार मे थोड़ा वक्त तो लग ही जाता था। तब तक सामने वाले का प्रश्न मुँह बाए उनके लौटने का इंतजार कर रहा होता।
आप कतार मे है, कृपया लाइन पर बने रहें, ये संकेत देने के लिए, उस प्रश्न का महत्वपूर्ण हिस्सा , प्रतीक्षारत व्यक्ति का मनोरंजन करने के लिए उनके मुँह से लंबा होकर बजने लगता।
एक बार, कंपनी के निदेशक ने बुलाया था, आते ही पूछा, ये जो नया उत्पाद बनाने की योजना चल रही है, उसकी पड़ता(कॉस्टिंग) क्या आ रही है, लोधा जी अपनी आदत के अनुसार, बजने लगे ,पड़ताआअअअअ अ अ आ, तब तक निदेशक का कोई जरूरी फ़ोन आ गया, उन्होंने इशारों मे बता दिया, कि इसका विस्तृत आकलन करके उनको जल्द से जल्द प्रेषित कर दें।
लोधा जी अनमने से लौट आए और हिसाब किताब मे जुट गए।
बीवी के मायके जाने के कारण,
दोपहर को फैक्ट्री की कैंटीन मे खाना खाना बैठे तो आमने सामने दो लंबी टेबल लगी हुई थी। कुर्सियां डाल कर लोग खाना लगने की अपेक्षा मे थे।
फिर खाना परोसने वाला जल्दबाजी से इन टेबलों के बीच खाने का एक एक सामान लेकर हर एक को पूछता हुआ , लोधा जी के पास भी आ पहुंचा और पूछा रोटी दूँ क्या।
लोधा जी के सोचते सोचते , उनके मुंह से रोटी लंबी होकर बजने लगी, परोसने वाला जल्दी मे था, ज्यादा देर रुक नही पाया और आगे बढ़ गया।
लोध जी जब तक बोल पाए, हाँ देदो,
वो बाकियों को परोस कर कोई दूसरा सामान लाने रसोईघर मे जा चुका था।
फिर जब वो कोई दूसरा सामान लेकर दाखिल हुआ, अभी दूर मे था, उनका एक सहकर्मी बोल पड़ा, लोधा जी, गट्टे की सब्जी आ रही है, अभी से सोचना शुरू कर दीजिए लेनी है क्या नही?
ताकि उसके आप तक पहुंचने तक, आप भी निर्णय तक पहुंच जाएं।
एक दो दिनों के बाद ही , धर्मपत्नी के वापस आने तक, उनके विचारों की रेलगाड़ी निर्बाध चलती रहे, रसोईघर से ही उनकी पूरी थाली परोस कर लाई जानी लगी।
अब जब वो कैंटीन मे जाते, परोसने वाला बोल पड़ता, आप बैठिए, आपकी थाली सज रही है।
लोधा जी, मुस्कुराकर,थाली आने तक फिर किसी नई सोच मे लीन पाए जाते।