राम की महिमा
कीर्ति छंद
वार्णिक
विधान: तीन सगण एक गुरू
112 112 112 2
बसते हिय राम पियारे|
मनवा नित राम पुकारे||
अब नाथमम् दर्श दिखा दो|
भवसागर पार लगा दो||
सियराम कहें प्रभु दाता|
तुमको भक्ति मन भाता|
रखते नित ध्यान भक्तों का|
पुजते मन से अ सक्तों का||
कहते जब राम कि गाथा|
मिलता तब नेह अबाधा||
महिमा प्रभु की अब जानों|
सुख सागर को पहचानों||
विपदा मुझपे अब भारी|
समझो मुझको भवहारी||
कर दो महिमाअब हारी|
हर लो दुख हे! वनवारी||
कुमुद श्रीवास्तव वर्मा कुमुदिनी लखनऊ