सैनिक का वेलेंटाइन
# सैनिक का वैलेंटाइन-
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सुनो प्रिया!
यूं तो हमें मोहब्बत है बेइंतहा तुमसे।ये माना कि होंगी ढेर सारी शिकायतें भी मुझसे।चाहता हूं मैं भी तो इज़हारे इश्क़ तुमसे….पर क्या कहूं….कि तुम्हारे सिवा भी तो कोई है जो मेरे इजहारे इश्क़ का इंतज़ार कर रहा है…..वो वतन है मेरा जो मुझसे इंतकाम मांगता है….वो जो फ़ना हो गये लख्ते जिगर जिनके….उनके आंचल का इक भीगा सा कोना हर बार मुझसे ये सवाल करता है…..सुनो ना!!! उन जिहादियों से ,उन बिगड़े दरिंदो से मेरे बेटे की मौत का इंतकाम कब लोगे??
वो राखियां राह देखतीं हैं….बरसों से..भाइयों के घर आने का..उनके कभी ना खत्म़ होने वाले इंतजार की कसम ली है मैंने कि नहीं छोडूंगा मैं उन शैतानों को जिसने बहनों की खुशियां छीनी हैं।
मैंने वादें किये हैं उन तमाम बेवाओं से भी जिनका दामन बेरंग हुआ है।उनसे….जिनके माथे का सिंदूर देश के लिए बलिदान हुआ है।…वो कलाइयाँ जिनमें चूडिय़ां खनकतीं थी कभी ,वो कलाइयां मुझसे सवाल करतीं हैं..कि कब लोगे इंतकाम उन खूंखार जानवरों से??
मैं वचनबद्ध हूँ प्रिये!!उन दुधमुँहे बच्चों से जिन्होंने अपने पिता की सूरत भी न देखी…उन आनाथों से ….जो देशहित में जन्मजात अनाथ हो गये।मैं जब उन मासूम निगाहों को देखता हूँ …तो ऐसा लगता है जैसे…वे मुझसे पूछ रहे हो…चचा,मामा,……मेले पापा कब आएंगे…हृदय मे उस समय उठने वाले पीर की कसम …..मुझे इंतकाम लेना है।
सुनो ना!!…..अपने इस गुलाबी आंचल को आंसुओं से खारा न करो….पढ़ रही हो ख़त मेरा….ये सिर्फ गुलाबी कागज़ पे लिखे अल्फाज़ ही नहीं है…..ये एक सैनिक की अनकही मोहब्बत है जो फर्ज़ के मजबूत इरादों मे जकडी़ हुई है…..अपने दिल के किसी कोने में इसे सदा के लिए महफूज़ रखना…..।
तुम्हारा और सिर्फ़ तुम्हारा….नहीं मैं ये तो नहीं लिख सकता….तुमसे पहले इस देश का…
एक जांबाज सिपाही…
गणेश नाथ तिवारी”विनायक”