सेवा
सेवा दुखियों की करो, सबसे अच्छा योग।
तन मन धन अर्पित करो, खुद को रखो निरोग।
खुद को रखो निरोग, लोभ से दूरी रखना।
स्वार्थ न फटके पास, नज़र में छूरी रखना।
कह संजय कविराय, सुलभ उनको हर मेवा।
प्रेमभाव से जो निस्वार्थ करते हैं सेवा।।
संजय नारायण
सेवा दुखियों की करो, सबसे अच्छा योग।
तन मन धन अर्पित करो, खुद को रखो निरोग।
खुद को रखो निरोग, लोभ से दूरी रखना।
स्वार्थ न फटके पास, नज़र में छूरी रखना।
कह संजय कविराय, सुलभ उनको हर मेवा।
प्रेमभाव से जो निस्वार्थ करते हैं सेवा।।
संजय नारायण