सेवा का महिमा
सेवा का महिमा परंपार,,
धनसंपत्ती हे गौण.
प्रकाश है मुल हेतू रवी का,
उच्च स्थल महत्त्वहीन.
प्रकाश फैला तिमिर मे तू मत रख
उच्चस्थल की आस.
धनसंपत्ती की मत कर कामना तू,
सेवा का रख ध्यास.
मत रख मान सन्मान की आस तू,
मत रख कलश की कांक्षा.
नीव का पत्थर बनकर पूर्ण कर,
आधार की अपेक्षा.