Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
29 Jun 2023 · 3 min read

सेवक से सेवी

🔥सेवक से सेवी तक🔥
साहित्य अगर जीवन है तो शब्द उनके यंत्र है। परवर्तनशीलता, समग्रहता और समायोजन इन शब्दों को हमेशा जीवंत रखता है। परन्तु ये शब्द व्यक्ति और व्यक्तित्व को केंद्र रखकर अपना अस्तित्व संजोने में सक्षम रहते है। आज हम इसी क्रम में, दो बहुचर्चित शब्दों, सेवक v सेवी के बारे में, मै अपनी धारणा को व्यक्त कर रहा हूं।

विगत सौ वर्षो में शब्दों का सफर भी व्यक्ति और उनके व्यक्तित्व के इर्द गिर्द चलता रहा। प्रथम पचास वर्षों तक ‘सेवक’ ने सभी महान विभूतियों को अलंकृत किया, कभी उपसर्ग तो कभी प्रत्यय के रूप में। अतः यह जनसेवक, राष्ट्र सेवक और समाज सेवक इत्यादि से जाना जा रहा था। क्योंकि इसमें गुलामी के भी कुछ काल खंड शामिल थे, तो जितने भी सत्यग्रही थे, उन सभी की इसने भरपूर सेवा की और खुद पर गर्वित होता रहा। परन्तु आंदोलनकारियों को अपनी सेवा से महरूम रखा । इसके पीछे मौलिकता ही मूल कारण था और अपने आप को केंद्र में बनाए रखने में सफल रहा । सेवक, समर्पण का पर्याय है, मेरी समझ में। अतः पुरुषार्थ द्वारा अर्जित यश, विद्या और धन को , जन और समाज के उत्थान के लिए निःस्वार्थ रूप से समर्पित कर देना। पंडित मदन मोहन मालवीय, महात्मा गांधी, विनोबा भावे, लोहिया जी जैसे लोगों की एक लंबी श्रृंखला है जो ‘सेवक’ शब्द को सत्यार्थ और कृतार्थ करते रहे। इन विभूतियों द्वारा स्थापित मापदंड इतने कठिन और असाधारण थे की कुछ छद्म कर्मियों को इस शब्द से ही ईर्ष्या होने लगी और इसके प्यार्यवाचियों के माध्यम से, शब्द कलाकारों द्वारा इसे तिरस्कृत किया जाने लगा। चलिए चलते चलते इसके पर्यायवाची भी बता दू – नौकर, दास, चाकर, परिचारक, अनुचर, भृत्य, किंकर, मुलाजिम, खादिम, टहलुवा, खिदमतदार। अतः इसे हीन भाव से जोड़ा जाने लगा और ज्यों ज्यों हमारी आज़ादी युवा होती गई सेवक धीरे धीरे गायब होता गया ।

दूसरे पचास वर्षों में कलम के कलाकारों और छद्म कर्मियों का गठजोड़ रंग लाया, सेवक के पर्यायवाचियों में से उन्हें कुछ भी गरिमापूर्ण नही लगा। व्यक्ति और व्यक्तित्व बदल गया, भाव बदल गया, जनसेवक नेता होने लगा तो सेवक शब्द का विकल्प निकाला, कलम कलाकारों ने ‘सेवी’ I अतः अब सेवक, सेवी हो गया । अब यह प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है, जन सेवी और समाज सेवी के रूप में। बदलते व्यक्ति और व्यक्तित्व के साथ शब्दों का भी सफर चलता रहता है और इसके मायने भी। सेवी का अर्थ मेरी समझ में पोषित है। अब सेवी होते है, जनता और समाज द्वारा अर्जित यश, विद्या वा धन पर अपना एकाधिकार समझते हैं। चलिए इसके पर्यायवाचियो को भी समझें – सेवारत, पुजारी, आराधक, संभोग करने वाला, मैथुन करने वाला, आदी, व्यसनी। वैसे दोनो शब्द पुराने है परंतु सेवी का प्रयोग विशेष, प्रायः यौगिक शब्द के अंत में हुआ करता था जैसे , साहित्यसेवी, स्वदेश सेवी, स्त्री सेवी v चरण सेवी।

अंतर स्पष्ट है दूसरे पचास वर्षों में मौलिक गिरावट ही सेवक से सेवी तक के सफर का मूल कारण है, मेरी समझ में, जिसमे लालू, मुलायम, जयललिता, मायावती जैसे जनसेवियों की लंबी फेहरिस्त है, जो जनता और समाज को अपनी निजी चारागाह समझते है ।

लोकतंत्र है, तय कीजिए आप ‘ The People’

सेवक गढ़िए, सेवियों को बोलें आगे बड़िए।

🔥 जै हिंद 🔥

Language: Hindi
1 Like · 46 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
गीतिका
गीतिका
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
👌चोंचलेबाजी-।
👌चोंचलेबाजी-।
*प्रणय प्रभात*
मजदूर औ'र किसानों की बेबसी लिखेंगे।
मजदूर औ'र किसानों की बेबसी लिखेंगे।
सत्य कुमार प्रेमी
नेता पक रहा है
नेता पक रहा है
Sanjay ' शून्य'
जीने की वजह हो तुम
जीने की वजह हो तुम
Surya Barman
छत्तीसगढ़ के युवा नेता शुभम दुष्यंत राणा Shubham Dushyant Rana
छत्तीसगढ़ के युवा नेता शुभम दुष्यंत राणा Shubham Dushyant Rana
Bramhastra sahityapedia
कसम खाकर मैं कहता हूँ कि उस दिन मर ही जाता हूँ
कसम खाकर मैं कहता हूँ कि उस दिन मर ही जाता हूँ
Johnny Ahmed 'क़ैस'
कुछ देर तुम ऐसे ही रहो
कुछ देर तुम ऐसे ही रहो
gurudeenverma198
राम का आधुनिक वनवास
राम का आधुनिक वनवास
Harinarayan Tanha
सफाई इस तरह कुछ मुझसे दिए जा रहे हो।
सफाई इस तरह कुछ मुझसे दिए जा रहे हो।
Manoj Mahato
23/215. *छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
23/215. *छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
मेरी मजबूरी को बेवफाई का नाम न दे,
मेरी मजबूरी को बेवफाई का नाम न दे,
Priya princess panwar
ज़िंदगी  ने  अब  मुस्कुराना  छोड़  दिया  है
ज़िंदगी ने अब मुस्कुराना छोड़ दिया है
Bhupendra Rawat
Though of the day 😇
Though of the day 😇
ASHISH KUMAR SINGH
जब वक़्त के साथ चलना सीखो,
जब वक़्त के साथ चलना सीखो,
Nanki Patre
दिल तो ठहरा बावरा, क्या जाने परिणाम।
दिल तो ठहरा बावरा, क्या जाने परिणाम।
Suryakant Dwivedi
साथियों जीत का समंदर,
साथियों जीत का समंदर,
Sunil Maheshwari
*आयु मानव को खाती (कुंडलिया)*
*आयु मानव को खाती (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
*तंजीम*
*तंजीम*
DR ARUN KUMAR SHASTRI
माँ की छाया
माँ की छाया
Arti Bhadauria
अल्प इस जीवन में
अल्प इस जीवन में
Dr fauzia Naseem shad
अमृत पीना चाहता हर कोई,खुद को रख कर ध्यान।
अमृत पीना चाहता हर कोई,खुद को रख कर ध्यान।
विजय कुमार अग्रवाल
मरने से पहले / मुसाफ़िर बैठा
मरने से पहले / मुसाफ़िर बैठा
Dr MusafiR BaithA
राज़-ए-इश्क़ कहाँ छुपाया जाता है
राज़-ए-इश्क़ कहाँ छुपाया जाता है
शेखर सिंह
दवाइयां जब महंगी हो जाती हैं, ग़रीब तब ताबीज पर यकीन करने लग
दवाइयां जब महंगी हो जाती हैं, ग़रीब तब ताबीज पर यकीन करने लग
Jogendar singh
"दोषी कौन?"
Dr. Kishan tandon kranti
"माँ का आँचल"
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
कामनाओं का चक्र व्यूह
कामनाओं का चक्र व्यूह
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
हनुमान जी के गदा
हनुमान जी के गदा
Santosh kumar Miri
आदिशक्ति वन्दन
आदिशक्ति वन्दन
Mohan Pandey
Loading...