सृजन स्वयं हो
विशेष की तलाश में, क्यों शेष हो रहे हो।
तुम सृजन के अधिनायक, अवशेष हो रहे हो।।
हर व्यक्ति है भटकता, यदि रास्ते कई हों।
छोड़ो बढ़ो तुम आगे, तुम काल से जई हों।।
आहुत करोगे खुदको, शुभ लक्ष्य आगे रखकर।
स्वागत स्वयं करेगा, सौभाग्य आगे बढ़कर ।।
रहना नहीं तुम भ्रम में, कोई ब्रह्म है तुम्हारा।
खुद के खुदा खुदी हो, तुम ब्रह्म हो तुम्हारा।।
एकाकी भाव से तुम, दृढ़ लक्ष्य जब चुनोगे।
हे ब्रह्मरूप मानव, युग यश सृजित करोगे।।
जै हिंद