सृजन भाव का दिव्य अर्थ है (सजल)
सृजन बिना दिखती बेकारी।
सृजनशील मानव अविकारी।।
बिना सृजन उन्नति कब सम्भव?
रचनाकार स्वयं अधिकारी।।
कर्म भूमि से जिसे प्यार है।
उसकी जगती सबसे न्यारी।।
उत्तम कृत्य करे जो मानव।
उसकी चाल हमेशा प्यारी।।
जो आलस को दुश्मन जाने।
उसको माने दुनिया सारी।।
अनायास जीता काहिल ज़न।
कभी न होता वह हितकारी।।
करता जाता काम सदा जो।
कर्म लोक उसका आभारी।।
बनता स्वर्ग समान जगत यह।
अगर सर्जना हो प्रियकारी।।
पुण्य धाम कण कण हो जाता।
अगर सभी हों शिष्टाचारी।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।