सृजन कुंज के स्थापना दिवस पर कुंज एवं कुंज परिवार को हार्दिक
सृजन कुंज के स्थापना दिवस पर कुंज एवं कुंज परिवार को हार्दिक बधाई एवं अनंत मंगलकामनाएंँ
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दम्भ का प्रतिकार कर बस शील का सत्कार हो,
मान सर्जक को मिले अरु एक सम व्यवहार हो।
ले यही उद्देश्य सृजन कुंज की स्थापना ,
किन्तु अड़चन थे बहुत था दम्भियों से सामना।
एक से बड़ एक रोड़ा पांव में गड़ते रहे,
किन्तु प्रण साधे हुए कर ले इसे बढ़ते रहे।
मात्र केवल ध्येय यहीं बस तूलिका में धार हो।
मान सर्जक को मिले अरु एक सम व्यवहार हो।।
इक प्रयोजन नित मिले बस नव प्रतिभा को गगन,
ज्ञान की गंगा में गोते सब लगायें शुद्ध मन।
नव प्रयोगों से मिला पहिचान सृजन कुंज को,
सर्जकों ने मान दी अरु पंथ ज्योति:पुंज को।
कामना अधिगम निहित बस इक सहज आधार को,
मान सर्जक को मिले अरु एक सम व्यवहार हो।
कुंज में आये पखेरू उड्डयन की कामना,
सीख दी तब कुंज ने उछाह को मत थामना।
एक से कईएक होते कारवाँ बनता गया,
कुंज का वैभव बढ़ा उत्सव नवल मनता गया।
साहित्य हो समृद्ध यहाँ संस्थापना साकार हो।
मान सर्जक को मिले अरु एक सम व्यवहार हो।।
है नमन निज कुंज को जिसने हमें यह मान दी,
सहप्रशासक पद- प्रतिष्ठा दे हमें सम्मान दी।
नित फले आगे बढ़े, बढ़ता रहे बस कारवाँ,
कामना ज्ञानत्व की सरिता यहाँ हो नित रवाँ।
नष्ट हो मनभेद केवल और केवल प्यार हो।
मान सर्जक को मिले अरु एक सम व्यवहार हो।।
✍️ संजीव शुक्ल ‘सचिन’
मुसहरवा (मंशानगर)
पश्चिमी चम्पारण, बिहार