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2 May 2024 · 1 min read

सूर्य वंदना

“सूर्य वंदना”
कहते हैं कि सूर्य को, कभी कोई, छू नहीं पाया है
हां, वो छूता है सभी को, सभी पे उस का साया है

उसी की किरणों से है रोशन, हम सभी की दुनिया
बड़ी खामोशी से उसने अपना किरदार निभाया है

यहां संदर्भ, किसी व्यक्ति का या व्यक्तित्व का नहीं है
विषय एक सकल समग्र व्यक्तिमत्व के विकास का है

जो किसी भी मायने में एक खुली खदान से कम नहीं
प्रश्न, बढ़ती आशाओं पर सतत अपेक्षित प्रयास का है

भावनाओं की किरणें हमेशा ही मन को छूती हैं मगर
किसी को गरमी, तो किसी को गरिमा नजर आती हैं

तपन की रश्मि मिलती रही है बराबर सभी को मगर
कहीं बियाबान ज़मीं, तो कहीं, फसलें लहलहाती हैं

आइए अपनी दुनिया के हर सूरज का एहतराम करें
उन से कुछ सीखें हम कुछ उन ही के जैसा काम करें

अगरचे ना भी बन सकें जो हम सूरज उन ही की तरह
एक दिया बन कर सही, कुछ रोशनी का इंतजाम करें

~ नितिन जोधपुरी “छीण”

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