सूर्यदेव के किरिट-वर्ण का आशीष
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सूर्यदेव के किरिट-वर्ण का आशीष ??
1971 मई माह में, मेरे निवास पर एक निमंत्रण पत्र मद्रास (अब चेन्नई ) के सैनिक प्रतीक्ष्ण स्कुल से आया. जहाँ मेरा कनिष्ट भ्राता सैनिक शिक्षा ग्रहण में था. अतः निमंत्रण हर्षित मन से स्वीकार कर, मैं पहली बार दक्षिण भारत के यात्रा एवं सैनिक स्कुल, चेन्नई के क्षात्रों के स्नातक समारोह में शामिल हो गया l मेरे कनिष्ट भ्राता अलोक के सेना में कमीशंड ऑफिसर बनने के समरोह में.
यह समारोह की दो बहूत ही विशेषता ये थी ।
1 कैडेट के इस समूह ने पिछले सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए थे l
2. स्थल सेना नायक, सैनिक स्नातक के समाहरो के इतिहास में प्रथम बार भाग लेने आ रहें थे, उस समय स्थल सेना नायक जनरल साम होरमुसजी फ्रामजी जमशेदजी मैनेक्शा ; जो की सैमबहादुर के नाम से प्रसिद्ध थे , समारोह में भाग लेने आये l
समारोह अत्यंत अच्छा एवं सुनियोजित हुआ, मैंने भाई के कंधे में एक स्टार लगाया, औऱ वह भारतीय सैनिक के लेफ्टिनेंट घोषित हो गये. दूसरे दिन मैंने अपने भाई को हमारे घर के लिए मद्रास स्टेशन पर विदा कर दक्षिण भारत में अपनी यात्रा शुरू की क्योंकि मैं यह अवसर खोना नहीं चाहता था। दक्षिण की सुंदर प्रकृतिक हरियाली, मंत्रमुग्ध कर देने वाली मनोरम अपूर्व छटा बिखेरते हैं।
मंदिर विशाल हैं और मंदिरों का वातावरण शांत, सौम्य एवं एक अद्धभुत अध्यमिक वातावर्ण से लिप्त है। शांति एवं सौम्याता की भावना धीरे-धीरे, प्राणपोषक शरीर और मन में अस्पष्टीकृत आयाम तक फैल जाती है।
कई जगह घूमने के बाद कन्या कुमारी पहुंचा । तीन समुद्र, बंगाल की खाड़ी, भारतीय सागर और अरब सागर आपस में मिल रहे हैं और तीन तरफ अलग-अलग रंग की रजकण , लाल, रेतिला और सफेद छींतों भरा सागर तट को शुशोभित कर रहे हैं। इसे समुद्र त्रिवेणी संगम भी कहते है l यह मंत्रमुग्ध कर देने वाला मनोरम भारत के सबसे दक्षिण छोर पर बसा कन्याकुमारी वर्षो से कला, संस्कृति, सभ्यता का प्रतीक रहा है। भारत के पर्यटक स्थल के रूप में भी इस स्थान का अपना ही महत्च है। दूर-दूर फैले समुद्र के विशाल लहरों के बीच यहां का सूर्योदय और सूर्यास्त का दृश्य अति आकर्षक होता है। तथा समुद्र बीच में विवेकानंद स्मारक शिला, एक अति भव्य एवं सुंदर भवन, समुद्र के लहरों से टकराती एक मायावी भव्य शिला प्रतीत होता है l
मेरी योजना श्री विवेकानंद के प्रति अपनी श्रद्धा अर्पित कर शाम तक दूसरी जगह चले जाने की थी , परन्तु ऐसा नहीं हुआ। कियूं की ईश की नियति नियत है ??.
विवेकानंद स्मारक शिला लगभl 500 मीटर समुद्र तट से समुद्र में है, वहाँ तक ले जाने के लिए फ़ेरीबोट सेवा उपलब्ध है l
मैं फेरीवोट द्वारा वहाँ पहुंचा, श्रद्धांजलि दी फिर पूरे स्मारक शिला को देखने के लिए घूमने लगा । घूमते घूमते मुझे एक गुफा मिली, जहां बोर्ड पर लिखा हुआ था
“ध्यान गुफा”। मैं अंदर गया, देखा बहुत से लोग ध्यान में मग्न हैं, मैं भी ध्यान में लिप्त होने के लिये अपनी आँखें बंद कर लीं और समय के साथ कब पूर्ण धयानस्त हो गया पता ही नहीं चला ।
जब मैं ध्यान से जागृति हो अपनी आँखें खोलीं तो देखा कि वहाँ कोई नहीं था। मैं बाहर आया, चारों ओर देखा; कोई नहीं मिला, पूरी स्मारक शिला सुनसान है।
विवेकानंद स्मारक शिला में फ़ोटोग्राफ़ी प्रतिबंधित थी, और कई बोर्ड चारो ओर लगे थे l जब मैंने देखा कोई कही नहीं है,
मैंने इसे भगवान के आशीष अवसर के रूप में लिया और मेरे कैमरे से दनादान फोटो क्लिक करना शुरू कर दिया।
लेकिन यह कुछ ही समय तक चला, अचानक तीन भगवाधारी स्वामीजी
चिल्लाते हुए मेरे पास आ गये।
पहले उन्होंने मुझे अपना कैमरा क्लिक करने से रोका, फिर कैमरे से फ़िल्म निकल कर नष्ट कर दिया और फिर मुझे तुरंत विवेकानंद स्मारक शिला से बाहर निकलने का आदेश दिया; हाई टाइड ( समुद्र में ज्वार ) के कारण दोपहर 12 बजे के बाद जनता को रुकने की अनुमति नहीं है। और सारे दर्शकों को फेरिवोट, वापस लें, चली जाती है. एवं शाम को कोई फेरिवोट नहीं आती . ( मुझे पता नहीं था )
इस बीच काफी बातें और सवाल भी हुए। मैंने किसी तरह उन्हें शांत किया और कहा ठीक है, मैं जा रहा हूं, मैंने उन्हें अपना बैग सौंपा , जिसमें मेरी दो पोशाक, मेरा कैमरा और 12 फिल्म रोल थे, कियूं अब औऱ कोई चारा नहीं था, मैंने स्मारक शिला के किनारे के समुद्र की ओर कदम बढ़ाया, ताकि मैं तैर कर समुद्र तट पर चला जाऊ स्वामीजीओं ने मेरे इरादे का अनुमान लगाया और घबराते हुऐ बोले, आप क्या कर रहे हो?
मैंने कहा कि जैसा आपने मुझे जाने का आदेश दिया है और चूंकि कोई नौका नहीं है इसलिए मैं कूद कर मुख्य भूमि पर तैर जाऊंगा। उनमें से एक ने कहा, क्या आप होश में हैं, क्या आप इतने उच्च ज्वार को नहीं देख सकते हैं! यह इस चट्टानी समुद्र तल में आपके शरीर को टुकड़े-टुकड़े कर देगा।
मैंने कहा, क्या आप कृपया मुझे बताएंगे कि आप मुझसे क्या चाहते हैं ? आप ने ही कहाँ तुरंत जाओ, यहाँ ज्वार समय में किसी भी दर्शक के रहने कई आज्ञा नहीं है.
तो क्या करूँ?
सब स्वामीजी फुसफुसाते हुए सम्मेलन
कर बिचार कर, पहली बात उन्होंने पूछी, “क्या आपने अपना दोपहर का भोजन किया है।”
मैंने क्षुब्ध हो कर, उनकी आँखों में देखा और कहा, ‘हाँ सर, स्मारक शिला के हवा के साथ’।
पहले वे सब मुस्कुराए, फिर अट्टाहास कर हँसी उड़ाई, मुझे स्वामीजीयों ने अपने पास आमंत्रित किया l मैं वहाँ स्वामीजीयों के साथ तीन दिन रहा !
मैंने अपने को बहुत भाग्यशाली समझा, दूसरे दिन शाम को मैं स्वामीजी के साथ प्रकृति के आनंदमयी दृश्य के एक बहुत ही दुर्लभ दृश्य देखा। मैंने पहले कभी ऐसा अद्भुत दृश्य नहीं देखा था: “जब सूर्य अस्त हो रहा था- सूर्यदेव एक लालअम्बर विशाल रुप समुद्र को छूने को थी, आह वाह, अचानक पूरे सूर्य के चारों ओर एक महान ध्वनिहीन चमक थी, हरे-नीले आभा के साथ सूर्य के चारों ओर बस 15 सेकंड, 20 सेकंड हो सकता है … यह सूर्यअस्त के अति दुर्लभ एवं अंशिक समय में था ; सूर्य के किरीटवर्ण (Sun – Corona) हरी-नीली श्वेत चमक की अद्भुत धन्य दिष्ट है, जो की बहुत ही भाग्यशालीयों को देखने में मिलती है l
हम सभी मोहक रमणीय दृश्यस्थल में इतने मग्न हो गए थे, की समय की सारी गिनती खो दी और सूर्य के पूरी तरह से अस्त होने तक सम्मोहित होकर बैठे हर व्यक्ति इस अपूर्व दृश्य के संज्ञा एवं समय हीन के भव्य काल में खो गये ।
हम सब वहां काफी समय तक पूरी तरह से मौन बैठे रहे, अंधेरा होने लगा और जेष्ट स्वामीजी ने चुप्पी तोड़ी और मुझसे कहा, “आप एक धन्य भाग्यशाली एवं वरदानित व्यक्ति हैं। मेरे पूरे जीवन में यह दूसरी बार है जब मैं समुद्र के पास रह रहा हूं, औऱ सूर्यदेव के कीरिटवर्ण का आशीर्वाद मिला है।”
आज तक मैंने दोबारा नहीं देखा जब की मैं सागर तट पर इन 50 वर्षो में कई बार गया और स्वामीजी की टिप्पणी मेरे लिये एक “धन्य आशीष बन गया है”- भाग्यशाली!
मुझे लगता है शायद यथार्त में मैं भाग्यशाली हूँ, कारण मेरे जीवन की सारी घटनाये अपूर्व चमत्कारपूर्ण एवं साधारण भाषा में विश्वाशहीन हैँ, परन्तु सत्य है !!.
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