सूर्यग्रहण : पढ़े-लिखे लोग भी दिशाहीन
आज 26 दिसंबर, गुरुवार को इस साल का आखिरी सूर्यग्रहण था. हालांकि यह पूर्ण सूर्यग्रहण नहीं था. यह ग्रहण भारत में सुबह 8 बजे ग्रहण लगा और 1 बजकर 36 मिनट पर समाप्त हुआ. यूं यह उक्त जानकारी सभी को मालूूम है पर यह मैंने इसलिए लिखा कि इस लेख को जब कभी पढ़ा जाए, ग्रहण की तारीख, दिन और समय भी स्मरण हो आए.
इस प्रसंग पर मैं आज अपने कुछ बुद्धिजीवी मित्रों के बीच हुए संवाद शेयर करना चाहूंगा. एक का कहना होता है ‘अरे फलां, भैया आज तो मैंने सुबह से पानी भी नहीं पिया है, अब तो 2 बजे के बाद ही खाना होगा. हालांकि बेटे को तुलसी की पत्ती डालकर पानी दे दिया हूं.’ दूसरा बोलता है, ‘भैया भले ही कोई इसे अंधविश्वास कहे पर अपन तो इसे मानेंगे, जब तक सधता है. हालांकि हम जैसे लोगों को अंधविश्वासी कहते हैं’ एक ने तो मुझसे ही पूछ बैठा,‘हरदहा जी, आज तो मुझे ध्यान ही नहीं रहा कि सूर्यग्रहण है, जब मंदिर गया तो देखा कि मंदिर के पट बंद हैं, तब ध्यान में आया कि अरे आज तो ग्रहण है. कुछ होगा तो नहीं?’ मैंने तो अपना तर्कसंगत जवाब दिया, ‘अरे, कुछ नहीं होता.’ लेकिन मेरे यह जवाब देने पर वहां उपस्थित तीन-चार जोड़ी आंखें मुझे किसी किसी अजूबा सा व्यक्ति समझकर देखती हैं. लगभग सभी दकियानूसी वार्तालाप का समर्थन ही करते हैं. हालांकि अंदरखाने बहुत से समझदार लोग भी थे, जो उस वक्त भरपेट भोजन उदरस्थ कर चुके थे, वे न तो इस चर्चा के समर्थन में थे और न ही किसी तरह विरोध कर रहे थे. जब एक ने रूढ़िवादियों का विरोध किया तो वहां ग्रहण-भयभीत मंडली ने अप्रत्यक्ष रूप से उसे ‘नास्तिक’ ठहरा कर तिरस्कृत ही कर दिया.
मित्रों के इस वार्तालाप के दरम्यान मैं 35 साल पहले के अपनी जिंदगी के फ्लेशबैक1984 में पहुंच जाता हूं. मुझे अब भी वह याद है क्योंकि वह मेरे जीवन का वह पहला सूर्य ग्रहण था. उस वर्ष गर्मी में ग्रहण लगा था. उस साल मैं आठवीं कक्षा का विद्यार्थी था. पूरे कस्बे में भय का माहौल था. उस दिन अन्य गांव-कस्बों और शहरों की तरह मेरे कस्बे की सड़कें और गलियां भी सूनी हो गर्इं. ऐसा माहौल बन गया था जैसे कर्फ्यू लग गया हो. अम्मा-पापा ने मुझे और मेरे छोटे भाई राम को बाहर न निकलने की सख्त ताकीद दे रखी थी. लेकिन मुझे बहुत जिज्ञासा थी कि आखिर बाहर हो क्या रहा है? कुल मिलाकर माहौल ऐसा बन गया था कि जैसे दुनिया में कोई भारी आपदा आ गई हो. उन दिनों ग्रहण को लेकर अनेक अंधविश्वासी बातों का बाजार गरम रहता था. बाद में बात आई-गई हो गई. घर में अखबार तो आता ही था. अखबार पढ़ने का चस्का लग चुका था और मैं अखबार को चाट डालता था जिससे शनै: शनै: मेरी सोचने-समझने की क्षमता विकसित हो रही थी. छह-सात साल बाद जब 1991 में फिर से सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण लगे तब उन दिनों वैज्ञानिक जन-आंदोलन, केरल शास्त्र साहित्य परिषद और दिल्ली साइंस फोरम के साथ मशहूर वैज्ञानिक और शिक्षाविद प्रोफेसर यशपाल की पहल पर एक देशव्यापी जन-अभियान चलाने की योजना बनी. उन दिनों प्राइवेट चैनल का जमाना नहीं था, दूरदर्शन पर इस पर कार्यक्रमों के अलावा हजारों वैज्ञानिकों, शिक्षकों, विद्यार्थियों, साहित्यकारों, कलाकारों आदि ने देशभर में घूम-घूम कर 1991-92 में जन ज्ञान-विज्ञान जत्था के जरिए वैज्ञानिक चेतना, मानवतावादी मूल्यों और पर्यावरण जागरूकता का प्रचार-प्रसार किया. वह वही दौर था जब देश में राममंदिर बनाम बाबरी मस्जिद को लेकर सांप्रदायिक वातावरण काफी खतरनाक स्तर पर पहुंच चुका था. इस अभियान का एक परिणाम तो यह हुआ कि जगह-जगह विज्ञान और वैज्ञानिक प्रवृत्ति के प्रसार के लिए गतिवधियां व्यापक तौर पर होने लगीं. अखबारों और पत्रिकाओं में विज्ञान-संबंधी समाचारों को ज्यादा जगह दी जाने लगी. उत्तर भारत के लगभग सभी प्रमुख अखबारों ने विज्ञान को एक पूरा पन्ना देने का प्रयास किया. आज तो अखबारों में ग्रहण को लेकर अंधविश्वास फैलाए जाते हैं. इस पहल का नतीजा यह हुआ कि 1995 के पूर्ण सूर्यग्रहण को देशभर में पांच करोड़ लोगों ने पांच हजार वर्षों के बाद न सिर्फ पहली बार देखा, बल्कि विज्ञान का उत्सव भी मनाया. उस वक्त मेरे घर में तो टीवी नहीं थी, मेरे मित्र सतीश हरदहा जी के यहां टीवी थी जिसमें हमने देखा कि सूर्यग्रहण का सीधा प्रसारण कराया जा रहा था. प्रो. यशपाल जी ग्रहण को लेकर तमाम भ्रांतियों का खंडन-मंडन कर रहे थे. उन्होंने साफ-साफ बताया था कि ग्रहण के दौरान असामान्य कुछ भी नहीं है, सिवाय इसके कि सूरज कुछ देर के लिए असमय मद्धिम हो गया है. दिनचर्या के किसी भी हिस्से को रोकने की जरूरत नहीं है. परंतु उसके बाद के समय में देश-विदेश में कुछ ऐसी घटनाएं हुर्इं, जिनसे राजनीतिक और सांस्कृतिक ढांचे को जबरदस्त नुकसान हुआ. युद्ध, आतंक और दंगों से माहौल खौफनाक होता चला गया.
इस समय तो वैचारिक स्तर पर हम अपने इतिहास के उस अंधेरे दौर से गुजर रहे हैं, जब संविधान के मानवीय मूल्यों को ताक पर रखते हुए विज्ञान और तकनीक पर आधारित समाज को मध्ययुगीन मान्यताओं से बीमार करने की कवायद की जा रही है. शिक्षा संस्थानों के जनोन्मुखी चरित्र को बदल कर उन्हें न सिर्फ व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में बदला जा रहा है, बल्कि शिक्षा को अवैज्ञानिक बना कर इतिहास और विज्ञान को कपोल-कल्पना से दूषित किया जा रहा है. मीडिया का बड़ा हिस्सा समाचार-विचार के स्थान पर अंध-विश्वास और धार्मिक-जातिगत घृणा का प्रसार कर रहा है. सोशल मीडिया भी नफरत और हिंसा फैलानेवालों के लिए हथियार बनता जा रहा है. सवाल यह है कि क्या इस देश के लोकतांत्रिक और मानवतावादी चरित्र को बिना वैज्ञानिक दृष्टिकोण के प्रसार के बचाया जा सकता है. सूर्य पर लगा ग्रहण तो चंद घंटों में अपने-आप हट जाएगा, पर हमारी सभ्यता पर ग्रहण का जो खतरा मंडरा रहा है, उससे बचने के लिए वैज्ञानिक चेतना और मानवतावादी मूल्यों की रक्षा करनी पड़ेगी.
मेरे भाइयों, सूर्य ग्रहण हो या चंद्रग्रहण दोनों को समझना जरूरी है. तरह-तरह की बाहियात बातें आज भी जो की जा रही हैं, वह निरा बकवास हैं. दुर्भाग्य है कि इन दिनों टीवी चैनल भी ग्रहण को लेकर अंंधविश्वास फैलाने में जुटे हुए हैं. वैज्ञानिक नजरिए से यह एक खगोलीय घटना से ज्यादा कुछ नहीं है.
ग्रहण काल की अवधि में भोजन न करनें, पानी न पीनें, शारीरिक संबंध न बनाने, गर्भवती महिलाओं या रोगियों को ज्यादा सतर्क रहने के लिए कहा जाता है. हद तो तब हो जाती है जब ग्रहण के भय से मंदिरों के पट भी बंद कर दिए जाते हैं कि ग्रहण का दुष्प्रभाव मंदिर में बैठे देवता पर न पड़े. जबकि वैज्ञानिक इस तरह की बातों को महज भ्रांति मानते हैं. वैज्ञानिकों का कहना है कि सूर्य ग्रहण में जो काम एक सामान्य व्यक्ति कर सकता है, वे सभी काम करने से गर्भवती महिलाओं या रोगियों को रोकना अंधविश्वास है. रहा सवाल सूर्य ग्रहण को नग्न आंखों से न देखने की तो सामान्य सूर्य को भी नंगे आंख नहीं देखना चाहिए. आपने स्कूली अध्ययन के दौरान पढ़ा ही होगा कि सूर्य ग्रहण कैसे लगता है, मैं यहां एक बार आपको फिर एक बार बता देना चाहता हूं कि कैसे लगता है सूर्य ग्रहण?
1. जब सूर्य और पृथ्वी के बीच में चंद्रमा आ जाता है तो सूर्य की चमकती सतह चंद्रमा के कारण दिखाई नहीं पड़ती है.
2. चंद्रमा की वजह से जब सूर्य छिपने लगता है तो इस स्थिति को सूर्य ग्रहण कहते हैं.
3. जब सूर्य का एक भाग छिप जाता है तो उसे आंशिक सूर्यग्रहण कहते हैं.
4. जब सूर्य कुछ देर के लिए पूरी तरह से चंद्रमा के पीछे छिप जाता है तो उसे पूर्ण सूर्यग्रहण कहते हैं.
5. पूर्ण सूर्य ग्रहण हमेशा अमावस्या को ही होता है.
– 26 दिसंबर 2019, गुरुवार