सूरज की संवेदना
ढलते सूरज को देखकर मैने पूछा,रवि क्यों हो उदास,
किस बात का गम है ,तुम तो हो सौरमंडल के बॉस।
तुमसे ही इस धरती का जीवन है ,और आगे है आस,
हे मित्राय मुझे बताओ, यदि कोई उलझन है खास।।
भानु बोले–
दिनभर देताऊर्जा प्रकाश,जिससे तुम सब कुछ करते हो,
पर शाम को मेरे ढलने पर,तुम क्या क्या जश्न मनाते हो।
क्या रीत बना रक्खी तुमने, उगते का अभिनन्दन करतें हो,
अहसानभूलकर ढलनेवाले के,मिटने कीप्रतीक्षाकरतेहो।।
कल आने का मन नहीं मेरा,पर ख्याल उन्हीं केआते हैं,
जो प्रातः करते नमन मुझे, और अध्यॅ नीर का देते हैं ।
और शाम को मेरे ढलने पर, जो संध्या वंदन करते हैं ,
तुम बोलो कैसै दिल तोड़ू, जो ऐसे सज्जन मानव हैं ।।
युग सहस्त्र योजन पर मैं हूं,आठ मिनट में भेजू किरनें,
जल थल के फ़ाना फ्लोरा को,नवजीवन उर्जा से भरने।
मेरे प्रकाश में सात रंग, एक अल्ट्रा औ एक इन्फ्रा भी,
सारी दुनिया के रंग मेरे ,क्या जल ,थल मे क्या नभ में भी।
चंदा की चांदनी मुझसे है, वर्षा का कारण भी मैं हूं ,
सारी ऋतुएं मुझसे ही हैं,फल अन्न कापोषक भी मैं हूं ।।
हिरण्यगर्भ की करुणा–
अति हाइड्रोजन हीलियम गैसें, विस्फोट दनादन जारी है,
अन्दर का ताप 15 मिलियन, 6 के सेल्सियस बाहरी है।
हृदय धधकता है मेरा, तुम मेरी पीड़ा क्या जानों ,
गर्मी में कहते हो प्रचंड, औ जाड़ों में निष्ठुर मानों ।।
पर तनिक नहीं गलती मेरी, अवनी परिवर्तन करती है,
गर्मी में आती पास और, जाड़ों में दूर भागती है।
सविता का उलाहना–
शिकवा करते हो तुम मुझसे, झुलसाना हूं मैं तापों से,
ओजोन परत को क्षीण किया,खुद अपनी क्रिया कलापों से।
धरती के पेड काट डाले, जो छाया प्राणवायु देते,
जीवन को सुखमय करने को,संतुलन इको सिस्टम करते।।
हे मार्तण्ड! तुम को प्रणाम, बी आर की बस यह अर्जी है,
तुम रहो सदा सब के अनुकूल, बाकी आप की मर्जी है।
इस कविता में सूरज की जानकारी तथा पर्याय प्रयोग किए गये हैं