सूरज की छवि
सूरज की छवि कभी धूमिल कर पाया है कोई
रवि-कवि-छवि कभी धूमिल कर पाया है कोई
पृष्ठभूमि धूमिल हो पर आगत का स्वागत कर
क्षर-गोचर-अगोचर- स्वागत कर पाया है कोई ।।
मधुप बैरागी
सूरज की छवि कभी धूमिल कर पाया है कोई
रवि-कवि-छवि कभी धूमिल कर पाया है कोई
पृष्ठभूमि धूमिल हो पर आगत का स्वागत कर
क्षर-गोचर-अगोचर- स्वागत कर पाया है कोई ।।
मधुप बैरागी