सूरज काका
सूरज काका अनुशासित हो, सारे नियम निभाते हैं
बैठ समय के पहिये पर ये, हमसे मिलने आते हैं
पूर्व दिशा से आकर जग में,नव संचार जगाते हैं
दिन भर तपकर थक जाते जब,पश्चिम में सो जाते हैं
वैसे तो दिल के अच्छे ये दोस्त हमारे हैं सच्चे
लेकिन कभी कभी ये हमको अपनी अकड़ दिखाते हैं
जब सर्दी के दिन आते हैं ,खुद बादल में छिप जाते
कई कई दिन नहीं निकलकर, हमको खूब सताते हैं
गर्मी के मौसम में भी यह ,करते रहते मनमानी
खूब चमक अपनी दिखलाकर, हमको रोज जलाते हैं
सदा खेलते रहते हैं ये, आँखमिचौली अपनों से
कभी धूप से नहलाते तो, कभी छाँव ले आते हैं
दुनिया सारी नत मस्तक हो,नमन ‘अर्चना’ करती है
आशाओं का नया सवेरा, सूरज काका लाते हैं
15-05-2022
डॉ अर्चना गुप्ता