सूरज आज किधर निकला है
पंख परिंदे का क्यों फड़का,
नया नया सा पर निकला है।
सघन अंधेरा दिन में छाया,
सूरज आज किधर निकला है।।
क्यों आई है याद दुबारा,
उनकी जिनको भूल चुके थे,
उनका भेजा फूल गुलाबी,
पन्नों के भीतर निकला है।
कैसे शिकवा और शिकायत,
गैरों से हम आज करें,
मुझ पर तीर चलाने वाला,
जब मेरा ही घर निकला है।
ऊंची ऊंचे महल मीनारें ,
जो निज कर से गढ़ता है,
जा करीब जब उसको देखा,
बेचारा बेघर निकला है।
बारिश धूप सहन करके जो,
पेट हमारा भरता है।
भूखे पेट खड़ा खेतों में,
हुआ पसीना तर निकला है।।