सूरज आएगा Suraj Aayega
आएगा सूरज
तम को चीरती हुई
सूरज की रश्मियां
छाती हैं पलभर में
संपूर्ण लोक में।
सात रश्मियों के रूप में
लोक की दिव्यता
धरा, व्योम जीवन
को नित नव आधार
देती हैं।
सात रश्मियों की आभा,
प्रातः कालीन तेज से,
ऊर्जस्वित होकर पादप,
नयी ताजगी से
सुखद, मनोहर छवि
से अलंकृत होते हैं
पक्षियों के कलरव
नये विहान के आगमन का
संकेत करते हैं
संपूर्ण लोक में।
सूरज निकलता है
बढ़ता है धीरे-धीरे
उच्चाकाश में
दिन का दाता, दिनकर
रवि, दिवाकर, भास्कर
खेलती हैं किरणें
नीले आकाश में।
समय रुकता नहीं
बढ़ता है शनै: शनै:
समय की अपनी सीमा है
ठहरना, रुकना
समय की नीयति में नहीं
उगता है सूरज
बढ़ता है सूरज
आलोकित करता हुआ
दूर कहीं जाता है किसी और
लोक की यात्रा पर
आलोकित करने
जिसे हम कहते हैं
सूरज ढल गया
सांझ हो गई।
आएगा सूरज
छाएग सूरज
अपने रश्मियों से आलोकित
करता हुआ,
संपूर्ण लोक में।।
**© मोहन पाण्डेय ‘भ्रमर ‘
31 मार्च 2024
का आलोक