सूना आज चमन…
सूना आज चमन…
हौंस और उल्लास कहाँ अब,
बुझा-बुझा सा मन।
देख अभागी किस्मत अपनी,
रोता है हर छन।
कितने अरमां कितने सपने,
नित अकुलाते थे।
पूरे होंगे सोच एक दिन,
हम इठलाते थे।
मधु-रसकण का वर्षण होगा,
था अनुमान सघन।
लदे सुखों से दिन थे जगमग,
हँसती थी राका।
अरमां भोले जब्त हुए सब,
पड़ा गजब डाका।
किर्च-किर्च सब ख्वाब हुए हैं,
चटक गया दरपन।
नहीं किसी से द्वेष हमें था,
सब तो थे अपने।
मिलजुलकर सब साथ रहेंगे,
देखे थे सपने।
रही मगर हर आस अधूरी,
सूना आज चमन।
दरकते आज रिश्ते-नाते,
कौन किसे जाने ?
रत हैं सभी स्वार्थ में अपने,
कौन किसे माने ?
रिसते छाले, बहते आँसू,
चुभते बिखरे कन।
चला कुचक्र नियति का ऐसा,
सूखा सुख-सागर।
रिस गया नेह-रस जीवन से,
रीती मन-गागर।
ताल मिला कर वक्त भाग्य से,
करे अजब नर्तन।
बँधी बहुत उम्मीद हमें थी,
सुख अब आएँगे।
दूर नहीं दिन जब खुशियों के,
बदरा छाएँगे।
ऐन वक्त पर सोयी किस्मत,
जाग उठी तड़पन।
खायी हमने मात सदा जो,
कमी हमारी थी।
सबको भला समझ लेने की,
हमें बिमारी थी।
दिल-दिमाग बिच इसी बात पर,
होती नित अनबन।
सूना आज चमन…
© सीमा अग्रवाल,
जिगर कॉलोनी,
मुरादाबाद
“मनके मेरे मन के” से