सूखी रोटियाँ
लघुकथा
शीर्षक – सूखी रोटियाँ
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“ओये सुनील क्या लाया टिफिन में”
“कुछ नहीं अनुज, वहीं माँ की बनाई रोटी की रोल”
” चल ला मुझे और ये ले मेरा टिफिन इसमे कमला आंटी ने बर्गर रखा है”
” अरे वाह, बहुत ही टेस्टी है लेकिन तू क्यों नहीं खाता इसे l रोज तू अपना टेस्टी खाना मुझे देकर मेरी सुखी रोटियाँ खाने लगता है, क्या ये ज्यादा अच्छी है l”
“हाँ सुनील बहुत अच्छी क्योंकि ये तेरी माँ अपने हाथ से बनाती है l अपनी ममता और हाथो का स्वाद डाल कर ”
“क्या तेरी माँ नहीं है”
” माँ तो है लेकिन किटी पार्टियों में व्यस्त, डैडी को काम से फुर्सत नहीं l कब घर आये और कब चले गये पता ही नहीं चलता l मेरी दुनियाँ तो स्कूल और कमला आंटी तक ही सिमट कर रह गयी l माँ बाप का प्यार तो मेरी लिये मिस्टर इंडिया सा हो गया l तू बहुत किस्मत वाला है सुनील कि तेरी माँ तेरी लिये अपने हाथों से खाना बनाती है l ये रोल कैसे बनता है? ”
” रात की रखी रोटियों को सुबह तबा पर सेका, थोड़ा सॉस लगाया और उबला आलू l लो बन गया रोल”
” नहीं एसे नहीं बनता, ये बनता है माँ के हाथो की ममता लगने से… कितना यम्मी है न… “- दोनों खिलखिला कर हँस पड़े l
राघव दुबे’रघु’
इटावा
8439401034