सूक्ष्म आलोचना
सूक्ष्म आलोचना
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सूक्ष्म-आलोचना अमृत के समान है जिसे सहर्ष स्वीकार करना अपने व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करना है जबकि अति-प्रशंसा धीमा जहर है जो हमें विनाश की ओर ले जाता है |
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डॉ ०प्रदीप कुमार दीप