నా గ్రామం
डॉ गुंडाल विजय कुमार 'विजय'
अपने जीवन में सभी सुधार कर सकते ।
अंबा नाम उचार , भजूं नित भवतारीणी।
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
बदमिजाज सी शाम हो चली है,
संस्कार मनुष्य का प्रथम और अपरिहार्य सृजन है। यदि आप इसका सृ
*जिन पे फूल समझकर मर जाया करते हैं* (*ग़ज़ल*)
इश्क जितना गहरा है, उसका रंग उतना ही फीका है
खुबिया जानकर चाहना आकर्षण है.
हमर महतारी भाखा छत्तीसगढ़ी ए...
-: ना ही चहिए हमें,प्रेम के पालने :-
#ਮੇਰੇ ਉੱਠੀ ਕਲੇਜੇ ਪੀੜ
वेदप्रकाश लाम्बा लाम्बा जी