*अब सब दोस्त, गम छिपाने लगे हैं*
*बहुत याद आएंगे श्री शौकत अली खाँ एडवोकेट*
आज का इंसान ज्ञान से शिक्षित से पर व्यवहार और सामजिक साक्षरत
मुझ जैसे शख्स को दिल दे बैठी हो,
* गीत प्यारा गुनगुनायें *
ना होंगे परस्त हौसले मेरे,
कहानी- "हाजरा का बुर्क़ा ढीला है"
जब किसी कार्य के लिए कदम आगे बढ़ाने से पूर्व ही आप अपने पक्ष
क्यों करते हो गुरुर अपने इस चार दिन के ठाठ पर