सुहाता बहुत
गीतिका
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बहाना नहीं जो बनाता बहुत।
सभी को हमेशा सुहाता बहुत।
कभी मुश्किलों का कठिन दौर हो।
सदा स्नेह से पेश आता बहुत।
भरोसा सभी का मिला है उसे।
कहे कम मगर कर दिखाता बहुत।
उसे ही सभी चाहते खूब हैं।
मुहब्बत सभी से निभाता बहुत।
सभी मौन क्यों जान यह लीजिए।
न कोई कभी मुस्कुराता बहुत।
दिखाता रहा हौंसला जो सदा।
वही कष्ट से पार पाता बहुत।
स्वयं तृप्त रहता लिए सर्वहित।
पिपासा सभी की मिटाता बहुत।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, ०८/०६/२०२४