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13 Oct 2024 · 1 min read

“सुविधाओं के अभाव में रह जाते हैं ll

“सुविधाओं के अभाव में रह जाते हैं ll
खुशी-खुशी हम गाँव में रह जाते हैं ll

कभी बहकावे में बहक जाते हैं,
‌ कभी भावनाओं में बह जाते हैं ll

मंजिलें आगे निकल जाती हैं,
और सफर पांव में रह जाते हैं ll

हम सच बोलने तक में हिचकते हैं,
और लोग झूठ बड़े चाव से कह जाते हैं ll

पढ़े लिखे बेरोजगारों के नाजुक स्वप्न,
आर्थिक तंगी और दबाव में ढह जाते हैं ll”

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