इस तरहां बिताये मैंने, तन्हाई के पल
सृष्टि का कण - कण शिवमय है।
वो चाहती थी मैं दरिया बन जाऊं,
बड़ी बेतुकी सी ज़िन्दगी हम जिये जा रहे हैं,
*श्री देवेंद्र कुमार रस्तोगी के न रहने से आर्य समाज का एक स्
हमें जीवन में अपने अनुभव से जानना होगा, हमारे जीवन का अनुभव
बेवजह ही रिश्ता बनाया जाता
सहचार्य संभूत रस = किसी के साथ रहते रहते आपको उनसे प्रेम हो
At the age of 18, 19, 20, 21+ you will start to realize that
रस्म ए उल्फ़त में वफ़ाओं का सिला
यही पाँच हैं वावेल (Vowel) प्यारे
खुद से रूठा तो खुद ही मनाना पड़ा
समझाए काल
PRATIBHA ARYA (प्रतिभा आर्य )