सुभाषचंद्र
दोहा गीतिका
भारत माता जन्म दे , फिर से वीर सुभाष
बोलो जय जय पावनी , पूरी हो अभिलाष
तेइस जनवरी ,उन्नीस , सत्ता अनवे जान
कर्म वीर की भूमि है , वही देश का मान
पिता जानकी नाथ थे , प्रभावती है मात
प्रसिद्ध वकील कटक के , थे सुभाष के तात
चौदह संतान मगर बस , बंधती इनसे आस
बोलो जय जय पावनी , पूरी हो अभिलाष
ऐसा सपूत मात का , करता है जो नाम
देश भक्त था वीर वो , जिसके अनुपम काम
राजनीति के गुरू जी, श्री चितरन्जन दास
रही वतन को बोस से , बहुत ज्यादा आस
हिन्द फौज को बना कर ,रचते एक विचार
आया था जो काम में , देश के व्यवहार
अंग्रेज सत्ता बनी थी , वतन ग्रीव की फांस
बोलो जय जय पावनी ,पूरी हो अभिलाष
दे दो मुझको खून तुम , मै दूँ हिंद आजाद
रक्त खोल कह रहा है ,सुभाष के मुख नाद
आकर्षित हो गये वो , एमिली शेंकल ओर
प्रेम सूत्र में बंधे है , नहीं प्रीत का छोर
,
नमन वंदन कर वीर का , अर्पित कर दूँ फूल
करबद्ध कर प्रार्थना , लगे मात नहि शूल
भारत मात सपूत हो , सुभाष जैसे वीर
कुछ कर गुजरे देश हित , इतना भर दो धीर
खेल खिलोने समझते ,नहीं करे विश्वास
बोलो जय जय पावनी ,पूरी हो अभिलाष