सुप्रभात कुण्डलिया
कान्हा तेरा नाम सुन,मन में नाचे मोर ।
तेरे सुमिरन मात्र से,होय सुहानी भोर ।।
होय सुहानी भोर,बाद सब मंगल होता ।
धरे नही जो ध्यान,मूर्ख अपना ही खोता ।
कहे भक्त उत्कर्ष,ध्यान धर जिसने जाना ।
तेरा ही वह हुआ,त्यागकर सबकुछ कान्हा ।।
नवीन श्रोत्रिय”उत्कर्ष”