सुन सखी एक बात सुहानी……………
सुन सखी एक बात सुहानी चिर विरह मे जलती दिवानी,
कोई ना रोके कोई ना टोके सांसो की माला टुट जानी ,
आकर मेरे मधु जीवन मे उसको थी एक ज्योति जलानी ,
निज सपनो की दुनिया बनाकर फिर उस मे आग लगानी,
सुन संखी एक बात सुहानी………………………1
बचपन बीता आई जवानी नव यौवन उपहार लिए ,
अविकसित सी देह मे भरकर सोंधी सुगंध सुबास लिए,
तन का कोई मोल नही एक दिन मिट्टी मिल जाना है ,
भाव समर्पित करके साथी आगे ही बडते जाना है,
उसको क्या वो तो निर्दय ह्रदय ज्वाला जगानी थी ,
सुन सखी एक बात सुहानी,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,2
जीवन रस को रस तार – तार कर खुद से हौड लगानी
मिलन निशा को तकती आंखो मे रची विरह की एक कहानी,
नौका डूबी रूठा खैवैया कैसे मे तुझ तक आऊ ,
क्या भावो का मोल नही है तुम को मै कैसे पाऊ,
तुम मेरे ह्रदय तल मे बन कर बैठो हो शमशीर ,
सांस लुटा दू तुझे पर साथी काश बदल जाये तकदीर,
सुन सखी एक बात सुहानी चिर विरह मे जलती जवानी………..3