मेरी तृष्णा
सुन रे
अबोले , बेनाम रिश्ते — आ ,
अपनी बतियों ( बातों ) की सुई ला
और सिल दे
मेरी तन्हाइयों की फटी चूनर
सुन रे
अबूझे , अपठित प्रश्न
अपने शब्दकोश का
प्यारा सा शब्द ला
और रख दे
मेरी भी गूँगी ज़ुबान पर
आ रे
आकाश के उड़नखटोले पर बैठे चाँद
फैला दे चाँदनी
मेरी भी टूटी छत पर
गा रे
मधुर स्मृतियों के तानसेन
टूटी वीणा के तारों से
मेरे विलाप स्वर
पढ़ रे
अंधी आँखों के आईने की
किरचों ( चूरे ) में
सोई आत्मा के
खोए हुए अक्षर
गढ़ रे
एक ऐसा सा ताजमहल
इश्क की दीवारों पर
हुस्न की नक्काशी और
हँसती हुई मिनारों के
रोते हुए प्रस्तर ( पत्थर ) ।।।।
सीमा वर्मा