“सुन रहा है न तू”
कभी छिपकर बैठ, सपनों की खिड़कियों पर,
दिल की धड़कनों को, तू सुन रहा है न?
आधे रास्ते पर खड़ा, मेरे सपनों का मंजिल,
मेरी हर क़दम की धड़कन, तू सुन रहा है न?
बरसात के बूँदों से, जब धरती हो जुदा,
उस लहरों की कहानी, तू सुन रहा है न?
जब आँधियों का आवाज़, रात को घर में गूँजे,
उस बेचैनी की बिमारी, तू सुन रहा है न?
जीवन के रास्तों पर, जब बारिश गिरी हो,
मेरे सपनों की राहें, तू सुन रहा है न?
सुन रहा है न तू, मेरी बेबाक आवाज़,
मेरे दिल की छुपी हकीकत, तू समझ रहा है न?
“सुन रहा है न तू”, यह कविता कश्मीर से,
जब बोलता है दिल, तू समझता है न?
“पुष्पराज फूलदास अनंत”