सुनो ये आवाज
सुनो ये आवाज
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मन में उमंग होय तन में तरंग उठें,
होवत हैं लीन दोउ बीज रुप जात है ।
फूटत है बीज सूक्ष्म चीर कै धरा की पर्त,
ईश कौ विधान बीज हँस अँकुरात है।
कोमल उगै हैं यामें पात फिर लाल-लाल,
धरा हरषाय वाय हँस दुलरात है ।
मैं भी अँकुराय तेरे गरभ में उगि आई,
क्यों न मोय देख मात नैंक तू सिहात है ।।१
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तोकूँ जब ज्ञात भई गर्भ आय छोरी गई,
परी तोय कल नाँय निंदिया बिसारी है,
रात बतराय रही सुनी मैंने चुपचाप,
जाने काहे भई माँ तू इतनी दुखारी है ।
मोकूँ कटवायवे कूँ तू तौ री तयार भई,
तेरी उन बातन नै हालत बिगारी है,
कैसै री सिला सी तैनै अपने करेजा धरी,
सोच कहा बीतै मो पै चलै जब आरी है ।।२
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प्रभु नै दई है जौन ,छोरी मैं बनाय दई,
मेरौ कहा खोट नैंक मोय भी बताय दै ।
नानी के गरभ में ते तू भी छोरी बनि आई,
तेरौ कहा दोष हतौ मोउऐ सुनाय दै ।
काहे घबराय रही चौं ना तू समझ पाय,
छोरिन में खोट दोष कछु तौ दिखाय दै ।
विनती करूँ मैं कर जोर कै न मार मोय,
हँस-हँस मैया मोकूँ जनम दिवाय दै ।।३
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बात मेरी मात मान जीवन कौ दै- दै दान ,
देवी की मैं अंश तेरे अँगना में आऊंगी ।
पीऊँ तेरौ क्षीर डोलूँ अँगना में घुटुअन,
मीठी तुतलाय बोल उर हरषाऊंगी ।
पामन में पायलिया छनकैं ठुमक चलूँ ,
बैंदी और कजरा लगाय कै रिझाऊंगी,
भैया मेरौ ल्हौरौ सौ मेरै पीछै आयगौ तौ,
गोद में उठाय वाय रोज मैं खिलाऊंगी ।।४
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टूकन पै पार लीजो माँगुंगी न पकवान ,
वचन दऊँ मैं तेरौ मन न दुखाऊंगी ।
जैसे पहराय वैसे लत्ता पहराय दीजो ,
कुछ भी न माँगूं तेरे उर कूँ लुभाऊंगी ।
भेज दीजो पढ़वे कूँ मन कू लगाय पढ़ूँ,
काऊ कौ उलाहनौ न नैंक कभी लाऊंगी ।
दै दै री जनम मोय पेट में न मार मात ,
काऊ दिना चिड़िया सी फुर्र उड़ जाऊंगी ।।५
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मान कूँ घटाऊं नहीं रोशन करूंगी नाम,
धान की सी पौध जहाँ कहै रुप जाऊंगी ।
रूखौ-सूखौ जैसौ भी तू देगी चुपचाप चुगूँ,
पेड़ की अमर बेल सी मैं जाय छाऊंगी ।
कुल कौ निकासूँ नाम करूँ बदनाम नाय,
चौं तू घबराय तोय नैंक न सताऊंगी ।
प्रेम ते बुलायगी तौ सावन में तीजन पै,
भेजियो लिवावे संग दौरि चली आऊंगी ।।६
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घोड़ी पै चढ़ैगौ जब भैया मेरौ दूल्है बन,
ओढ़ूँ घोड़ी आगै मैया चूनरी सिहाऊंगी ।
भाभी लिये संग जब द्वार आय भैया मेरौ,
द्वारन पै रोरी घोर साँतिये धराऊंगी ।
नेग कू करुंगी हठ दे जो चुपचाप धरूँ,
ढोलक बजाय नाचूँ खूब गीत गाऊंगी ।
लड्डू धर बोइया में जाऊँ सुन बाँटवे कूँ ,
तेल चाक भात करै हाथ मैं बँटाऊंगी ।।७
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कली बिन फूल नाँय खिल पाँय बागन में,
फूल बिना तितली न भँवराहु आँय री ।
छोरी नाँय होंय तौ तू इतनौ री सोच मात,
पूतन कूँ कैसै बता बहू मिल पाँय री ।
सूनी सी कलाई लिये डोलैं छोरा खिसियाये,
बहन न होंय राखी कौन पै बधाँय री ।
‘ज्योति’ कहै अब तौ तू मैया मेरी बात मान,
छोरा छोरी एक से हैं ज्ञानी समझाँय री ।।८
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-महेश जैन ‘ज्योति’
६- बैंक काॅलोनी, महोली रोड़,
मथुरा-२८१००१
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